अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 129/ मन्त्र 17
अजा॑गार॒ केवि॒का ॥
स्वर सहित पद पाठअजा॑गार॒ । केवि॒का ॥१२९.१७॥
स्वर रहित मन्त्र
अजागार केविका ॥
स्वर रहित पद पाठअजागार । केविका ॥१२९.१७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 129; मन्त्र » 17
भाषार्थ -
(अजागार) हे प्रकृति के बने घरवाले जीवात्मन्! (केविका) प्रकृति तो तुम्हारी सेविका है, परन्तु तुम्हारी स्वामिनी बनी हुई है।
टिप्पणी -
[अजा=अजन्मा प्रकृति+आगार (गृह)। अजा=प्रकृति। यथा—“अजामेकां लोहितशुक्लकृष्णां बह्वीः प्रजाः सृजमानां सरूपाः” (श्वेताश्व০ उप০ ४.५) केविका=केवृ सेवने।]