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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 129

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 129/ मन्त्र 2
    सूक्त - देवता - प्रजापतिः छन्दः - प्राजापत्या गायत्री सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त

    प्र॑ती॒पं प्राति॑ सु॒त्वन॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र॒ती॒पम् । प्राति॑ । सु॒त्वन॑म् ॥१२९.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रतीपं प्राति सुत्वनम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्रतीपम् । प्राति । सुत्वनम् ॥१२९.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 129; मन्त्र » 2

    भाषार्थ -
    इन चित्तवृत्तियों में से प्रत्येक राजसिक तथा तामसिक वृत्ति, (सुत्वनम्) भक्तिरस के पीने वाले को भी (प्रतीपम्) विपरीत अर्थात् उल्टी भावनाओं से (प्राति) भर देता है [प्राति=प्रा पूरणे।]

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