अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 129/ मन्त्र 19
श्येनी॒पती॒ सा ॥
स्वर सहित पद पाठश्येनी॒पती॑ । सा॥१२९.१९॥
स्वर रहित मन्त्र
श्येनीपती सा ॥
स्वर रहित पद पाठश्येनीपती । सा॥१२९.१९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 129; मन्त्र » 19
भाषार्थ -
हे जीवात्मन् (सा) वह प्रकृति तो (श्येनीपती=श्येनीपतिः) नानाविधरूप-रंगोंवाली वेश्या समान है, जो तुझे विमोहित कर रही है।