अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 129/ मन्त्र 13
सघा॑घते॒ गोमी॒द्या गोग॑ती॒रिति॑ ॥
स्वर सहित पद पाठसघा॑घते॒ । गोमीद्या । गोगी॑ती॒: । इति॑ ॥१२९.१३॥
स्वर रहित मन्त्र
सघाघते गोमीद्या गोगतीरिति ॥
स्वर रहित पद पाठसघाघते । गोमीद्या । गोगीती: । इति ॥१२९.१३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 129; मन्त्र » 13
भाषार्थ -
परमेश्वर (गोमीत्) इन्द्रियों की चञ्चलताओं का विनाशक है, अर्थात् (याः) जो (गोगतीः इति) इन्द्रियों की अनियन्त्रित गतियाँ हैं उनका (सघाघते) विनाश करता है।
टिप्पणी -
[गोमीत्=गो=इन्द्रियां (उणादि कोष २.६७) वैदिक यन्त्रालय, अजमेर+मीत् (मीञ् हिंसायाम्)।]