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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 129

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 129/ मन्त्र 12
    सूक्त - देवता - प्रजापतिः छन्दः - प्राजापत्या गायत्री सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त

    स इच्छकं॒ सघा॑घते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । इच्छक॒म् । सघा॑घते ॥१२९.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स इच्छकं सघाघते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । इच्छकम् । सघाघते ॥१२९.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 129; मन्त्र » 12

    भाषार्थ -
    (सः) वह परमेश्वर (इच्छकम्) सांसारिक इच्छाओं के वशवर्ती मनुष्य की (सघाघते) हिंसा करता है, या उसकी उद्भूत हो सकनेवाली आध्यात्मिक शक्तियों पर आवरण डाल देता है।

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