अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 135/ मन्त्र 8
सूक्त -
देवता - प्रजापतिरिन्द्रश्च
छन्दः - भुरिग्गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
उ॒त श्वेत॒ आशु॑पत्वा उ॒तो पद्या॑भि॒र्यवि॑ष्ठः। उ॒तेमाशु॒ मानं॑ पिपर्ति ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒त । श्वेत॒: । आशु॑पत्वा: । उ॒तो । पद्या॑भि॒: । वसि॑ष्ठ: ॥ उ॒त । ईम् । आशु॒ । मान॑म् । पिपर्ति ॥१३५.८॥
स्वर रहित मन्त्र
उत श्वेत आशुपत्वा उतो पद्याभिर्यविष्ठः। उतेमाशु मानं पिपर्ति ॥
स्वर रहित पद पाठउत । श्वेत: । आशुपत्वा: । उतो । पद्याभि: । वसिष्ठ: ॥ उत । ईम् । आशु । मानम् । पिपर्ति ॥१३५.८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 135; मन्त्र » 8
भाषार्थ -
(उत) तथा (श्वेतः) शुभ कर्मोंवाला और शुभ्र सात्विक वृत्तियोंवाला उपासक, (आशुपत्वा) शीघ्र योगमार्ग पर गति करता है, शीघ्र उन्नति करता है, (उत उ) और (पद्याभिः) पद्यमयी-ऋचाओं द्वारा, उनके श्रवण-मनन द्वारा (यविष्ठः) योगमार्ग में अति वेग प्राप्त कर लेता है। (उत) और (आशु) शीघ्र (ईम् मानम्) योगी होने के इस मान को, सत्कार को (पिपर्ति) पा लेता है।