अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 92/ मन्त्र 2
आ हर॑यः ससृज्रि॒रेऽरु॑षी॒रधि॑ ब॒र्हिषि॑। यत्रा॒भि सं॒नवा॑महे ॥
स्वर सहित पद पाठआ । हर॑य: । स॒सृ॒ज्रि॒रे॒ । अरु॑षी: । अधि॑ । ब॒र्हिषि॑ ॥ यत्र॑ । अ॒भि । स॒म्ऽनवा॑महे ॥९२.२॥
स्वर रहित मन्त्र
आ हरयः ससृज्रिरेऽरुषीरधि बर्हिषि। यत्राभि संनवामहे ॥
स्वर रहित पद पाठआ । हरय: । ससृज्रिरे । अरुषी: । अधि । बर्हिषि ॥ यत्र । अभि । सम्ऽनवामहे ॥९२.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 92; मन्त्र » 2
भाषार्थ -
(अधि बर्हिषि) हमारे हृदयाकाशों में (यत्र) जिन हृदयाकाशों में (अभि) परमेश्वर को साक्षात् करके (सं नवामहे) हम इकट्ठे मिलकर सम्यक्-स्तुतियाँ करते हैं—उन हृदयाकाशों में (अरुषीः) प्रकाशमयी तथा (हरयः) मनोहारी परमेश्वरीय-किरणें (आ ससृज्रिरे) पूर्णरूप में प्रकट हो गई है।
टिप्पणी -
[अरुषीः=आरोचनात् (निरु০ १२.१.७)। तथा रोष, क्रोध आदि से छुड़ा देनेवाली।]