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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 92 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 92/ मन्त्र 2
    ऋषिः - प्रियमेधः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-९२
    54

    आ हर॑यः ससृज्रि॒रेऽरु॑षी॒रधि॑ ब॒र्हिषि॑। यत्रा॒भि सं॒नवा॑महे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । हर॑य: । स॒सृ॒ज्रि॒रे॒ । अरु॑षी: । अधि॑ । ‍ब॒र्हिषि॑ ॥ यत्र॑ । अ॒भि । स॒म्ऽनवा॑महे ॥९२.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ हरयः ससृज्रिरेऽरुषीरधि बर्हिषि। यत्राभि संनवामहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । हरय: । ससृज्रिरे । अरुषी: । अधि । ‍बर्हिषि ॥ यत्र । अभि । सम्ऽनवामहे ॥९२.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 92; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    १-३ राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (हरयः) दुःख हरनेवाले मनुष्य (अरुषीः) गतिशील [प्रजाओं] को (बर्हिषि) बढ़ती के स्थान में (अधि) अधिकारपूर्वक (आ ससृज्रिरे) लाये हैं, (यत्र) जहाँ पर [तुझ राजा को] (अभि) सब ओर से (संनवामहे) हम मिलकर सराहते हैं ॥२॥

    भावार्थ

    जिस राजा की सुनीति से विद्या द्वारा उन्नति होवे, प्रजासहित विद्वान् जन उसके गुणों का गान करें ॥२॥

    टिप्पणी

    १-३ व्याख्याताः-अ० २०।२२।४-६ ॥

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    विषय

    देखिए व्याख्या अथर्व०२०.२२.४-६ पर।

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    भाषार्थ

    (अधि बर्हिषि) हमारे हृदयाकाशों में (यत्र) जिन हृदयाकाशों में (अभि) परमेश्वर को साक्षात् करके (सं नवामहे) हम इकट्ठे मिलकर सम्यक्-स्तुतियाँ करते हैं—उन हृदयाकाशों में (अरुषीः) प्रकाशमयी तथा (हरयः) मनोहारी परमेश्वरीय-किरणें (आ ससृज्रिरे) पूर्णरूप में प्रकट हो गई है।

    टिप्पणी

    [अरुषीः=आरोचनात् (निरु০ १२.१.७)। तथा रोष, क्रोध आदि से छुड़ा देनेवाली।]

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    विषय

    ईश्वर स्तुति।

    भावार्थ

    (१-३) तीनों मन्त्रों की व्याख्या देखो (अथर्व का० २०। २२। ४–६)

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १-१२ प्रिययेधः, १६-२१ पुरुहन्मा ऋषिः। इन्द्रो देवता। १-३ गायत्र्यः। ८, १३, १७, २१, १९ पंक्तयः। १४-१६, १८, २० बृहत्यः। शेषा अनुष्टुभः। एकविंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brhaspati Devata

    Meaning

    Let the vibrations of divinity, like crimson rays of dawn which bring the sun to the earth, bring Indra on to our sacred grass where we humans meet and pray and celebrate the lord in song together.

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    Translation

    The men in the Yajna (Varhisi) have enkindled the fire abaze where we adore and pray.

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    Translation

    The men in the Yajna (Varhisi) have enkindled the fire abaze where we adore and pray.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १-३ व्याख्याताः-अ० २०।२२।४-६ ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    ১-৩ রাজপ্রজাধর্মোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (হরয়ঃ) দুঃখ হরণকারী মনুষ্য (অরুষীঃ) গতিশীল [উদ্যোগী] প্রজাদের (বর্হিষি) উন্নতির স্থলে (অধিঃ) অধিকারপূর্বক (আ সসৃজ্রিরে) এনেছে, (যত্র) যেখানে [রাজা হিসেবে তোমার] (অভি) সবদিক থেকে (সংনবামহে) আমরা মিলিত হয়ে গুণগান/প্রশংসা করি।।২।।

    भावार्थ

    যে রাজার সুনীতিতে বিদ্যা দ্বারা উন্নতি হয়, প্রজা সহিত বিদ্বানগণ তাঁর গুণগান করুক।।২।।

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    भाषार्थ

    (অধি বর্হিষি) আমাদের হৃদয়াকাশে (যত্র) যে হৃদয়াকাশে (অভি) পরমেশ্বরকে সাক্ষাৎ করে (সং নবামহে) আমরা একত্রিত হয়ে সম্যক্-স্তুতি করি—সে হৃদয়াকাশে (অরুষীঃ) প্রকাশময়ী তথা (হরয়ঃ) মনোহারী পরমেশ্বরীয়-কিরণ-সমূহ (আ সসৃজ্রিরে) পূর্ণরূপে প্রকট হয়েছে।

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