अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 92/ मन्त्र 11
अतीदु॑ श॒क्र ओ॑हत॒ इन्द्रो॒ विश्वा॒ अति॒ द्विषः॑। भि॒नत्क॒नीन॑ ओद॒नं प॒च्यमा॑नं प॒रो गि॒रा ॥
स्वर सहित पद पाठअति॑ । इत् । ऊं॒ इति॑ । श॒क्र: । ओ॒हते॒ । इन्द्र॑: । विश्वा॑: । अति॑ । द्विष॑: ॥ भि॒नत् । क॒नीन॑: । ओ॒द॒नम् । प॒च्यमा॑नम् । प॒र: । गि॒रा ॥९२.११॥
स्वर रहित मन्त्र
अतीदु शक्र ओहत इन्द्रो विश्वा अति द्विषः। भिनत्कनीन ओदनं पच्यमानं परो गिरा ॥
स्वर रहित पद पाठअति । इत् । ऊं इति । शक्र: । ओहते । इन्द्र: । विश्वा: । अति । द्विष: ॥ भिनत् । कनीन: । ओदनम् । पच्यमानम् । पर: । गिरा ॥९२.११॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
मन्त्र ४-२१ परमात्मा के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(शक्रः) शक्तिमान् (इन्द्रः) इन्द्र [परम ऐश्वर्यवाला परमात्मा] (इत्) ही (उ) अवश्य (अति) तिरस्कार करके (विश्वाः) सब (द्विषः) विरोध करनेवाली प्रजाओं को (अति) सर्वथा (ओहते) मारता है, [जैसे] (कनीनः) चमकता हुआ सूर्य (गिरा) वाणी [गर्जन] से (पच्यमानम्) पचाये गये [ताड़े गये] (ओदनम्) मेघ को (परः) दूर (भिनत्) छिन्न-भिन्न करता है ॥११॥
भावार्थ
सर्वशक्तिमान् परमेश्वर हमारे सब विघ्नों को दूर कर देता है, जैसे सूर्य मेघ को छिन्न-भिन्न करके प्रकाश करता है ॥११॥
टिप्पणी
११−(अति) अतीत्य। उल्लङ्घ्य (इत्) एव (उ) अवश्यम् (शक्रः) शक्तिमान् (ओहते) उहिर् अर्दने। नाशयति (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् परमेश्वरः (विश्वाः) सर्वाः (अति) सर्वथा (द्विषः) द्वेष्ट्रीः प्रजाः (भिनत्) भिनत्ति (कनीनः) कनतिः कान्तिकर्मा-निघ० २।६। ईन् प्रत्ययः। प्रकाशमानः सूर्यः (ओदनम्) मेघम्-निघ० १।१०। (पच्यमानम्) ताड्यमानमित्यर्थः (परः) परस्तात्। दूरे (गिरा) शब्देन। गर्जनेन ॥
विषय
'मुक्तिप्रदाता' शक्र-इन्द्र
पदार्थ
१. (शक्र:) = वह सर्वशक्तिमान् प्रभु (इत् उ) = निश्चय ही (अति ओहते) = हमें भवसागर के पार ले-जाता है। (इन्द्रः) = सब शत्रुओं का विद्रावण करनेवाला प्रभु (विश्वाः द्विषः) = सब द्वेषों के (अति) = पार प्राप्त कराता है। २. (कनीन:) = दीप्त प्रभु-प्रकाशमय प्रभु (पर:) = सबसे परस्तात् वर्तमान है-सब गुणों के दृष्टिकोण से परे हैं-उत्कृष्ट हैं। वे प्रभु ही (गिरा) = ज्ञान की वाणियों के द्वारा (पच्यमानम्) = परिपक्व किये जाते हुए इस (ओदनम्) = हमारे अन्नमयकोश को-इस स्थूलशरीर को (भिनत्) = हमसे पृथक् करते हैं और हमें मुक्तिमार्ग पर आगे ले-चलते हैं।
भावार्थ
प्रभु ही शक है-इन्द्र हैं। वे ही हमें सब द्वेषों से ऊपर उठाते हैं और ज्ञानाग्नि में परिपक्व करके हमें मुक्त करते हैं।
भाषार्थ
(शक्रः) शक्तिशाली (इन्द्रः) परमेश्वर, उपासक को (विश्वा द्विषः) सब प्रकार की द्वेष-भावनाओं से (अति) अतिक्रान्त करके पृथक् करके (इत्) ही, (उ) अवश्य, उसका (अति ओहते) अतिवाहन करता है, उसे बन्धनों से छुड़ा देता है। (कनीनः) कान्तिमान् (परः) पर-ब्रह्म (गिरा) वेदवाणियों के कथनानुसार, (पच्यमानम् ओदनम्) पक रहे कर्मभोगों को (भिनत्) छिन्न-भिन्न कर देता है।
टिप्पणी
[कनीनः=कन् दीप्तिकान्तिगतिषु। ओदनम्=जैसे “भात का भोग किया जाता है, वैसे “कर्मो” का भी भोग किया जाता है। मन्त्र में “ओदन” पद कर्मभोग के लिए लाक्षणिक है। कर्मों का भी परिपाक होता है। कनीनः=कनि (कान्ति)+इनः (स्वामी)=कान्ति का स्वामी=अतिकान्तिमान्।]
विषय
ईश्वर स्तुति।
भावार्थ
(इन्द्रः) वह आत्मा या योगाभ्यासी पुरुष (शक्रः) शक्तिमान्, राजा के समान (विश्वाः द्विषः) समस्त शत्रुओं को (अति) अतिक्रमण करके (अति इत्) समस्त दुःखों के पार ही (ओहते) पहुंचा देता है। और वह (कनीनः) अति कमनीय, अति सुन्दर, सुरूप, कान्तिमान्, (परः) समस्त इन्द्रियगण और मन से भी परे विद्यमान रहकर (पच्यमानम् ओदनम्) परिपक्व होने वाले भात के समान, भोग्य ब्रह्मरूप बल को अथवा (परः पच्यमानं ओदनं) परम स्थान पर परिपक्व होते हुए तेज को (गिरा) स्तुति द्वारा या उपदेश द्वारा या ओंकार-रूप नाद द्वारा (भिनत्) भेद लेता है, उसे प्राप्त होजाता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१-१२ प्रिययेधः, १६-२१ पुरुहन्मा ऋषिः। इन्द्रो देवता। १-३ गायत्र्यः। ८, १३, १७, २१, १९ पंक्तयः। १४-१६, १८, २० बृहत्यः। शेषा अनुष्टुभः। एकविंशत्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Brhaspati Devata
Meaning
Indra, the sovereign soul of self-power, transcends all jealousy, malignity and enmity and, blest with top handsomeness and grace of the spirit, breaks open into words the mature knowledge and self-realised spiritual food for the seekers.
Translation
The mighty powerful Divinity destroys all the obstructive forces at the shining sun cleaves through the cloud smiten by the thundering-bolt.
Translation
The mighty powerful Divinity destroys all the obstructive forces at the shining sun cleaves through the cloud smitten by the thundering-bolt.
Translation
Just as small child, riding a new chariot, goes out to control a mighty lion and thus please his father and mother, similarly the well-versed yogi, assuming a subtle state and adopting a new body, accepts the Mighty God of Vast Repository of knowledge and actions, Worthy of Acquisition and being sought after, as his father and mother
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
११−(अति) अतीत्य। उल्लङ्घ्य (इत्) एव (उ) अवश्यम् (शक्रः) शक्तिमान् (ओहते) उहिर् अर्दने। नाशयति (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् परमेश्वरः (विश्वाः) सर्वाः (अति) सर्वथा (द्विषः) द्वेष्ट्रीः प्रजाः (भिनत्) भिनत्ति (कनीनः) कनतिः कान्तिकर्मा-निघ० २।६। ईन् प्रत्ययः। प्रकाशमानः सूर्यः (ओदनम्) मेघम्-निघ० १।१०। (पच्यमानम्) ताड्यमानमित्यर्थः (परः) परस्तात्। दूरे (गिरा) शब्देन। गर्जनेन ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
মন্ত্রাঃ-৪-২১ পরমাত্মগুণোপদেশঃ
भाषार्थ
(শক্রঃ) শক্তিমান্ (ইন্দ্রঃ) ইন্দ্র [পরম ঐশ্বর্যযুক্ত পরমাত্মা] (ইৎ) ই (উ) নিশ্চিতরূপে (অতি) তিরস্কারের মাধ্যমে (বিশ্বাঃ) সকল (দ্বিষঃ) বিরোধী প্রজাদের (অতি) সর্বদা (ওহতে) নাশ করেন, [যেমন] (কনীনঃ) দ্যুতিমান/প্রকাশমান সূর্য (গিরা) বাণী [গর্জন] দ্বারা (পচ্যমানম্) পাচনকৃত [তাড়ন কৃত] (ওদনম্) মেঘকে (পরঃ) দূরে (ভিনৎ) ছিন্ন-ভিন্ন করেন ॥১১॥
भावार्थ
সর্বশক্তিমান্ পরমেশ্বর আমাদের সকল বিঘ্নকে দূর করেন, যেভাবে সূর্য মেঘকে ছিন্ন-ভিন্ন করে প্রকাশিত হয়॥১১॥
भाषार्थ
(শক্রঃ) শক্তিশালী (ইন্দ্রঃ) পরমেশ্বর, উপাসককে (বিশ্বা দ্বিষঃ) সকল প্রকারের দ্বেষ-ভাবনা থেকে (অতি) অতিক্রান্ত করে পৃথক্ করে (ইৎ) ই, (উ) অবশ্যই, তাঁর (অতি ওহতে) অতিবাহন করে, তাঁকে বন্ধন থেকে মুক্ত করে। (কনীনঃ) কান্তিমান্ (পরঃ) পর-ব্রহ্ম (গিরা) বেদবাণীর কথনানুসারে, (পচ্যমানম্ ওদনম্) পরিপক্ক হওয়া কর্মভোগকে (ভিনৎ) ছিন্ন-ভিন্ন করেন।
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