अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 92/ मन्त्र 5
अर्च॑त॒ प्रार्च॑त॒ प्रिय॑मेधासो॒ अर्च॑त। अर्च॑न्तु पुत्र॒का उ॒त पुरं॒ न धृ॒ष्ण्वर्चत ॥
स्वर सहित पद पाठअर्च॑त । प्र । अ॒र्च॒त॒ । प्रिय॑ऽमेधास: । अर्च॑त ॥ अर्च॑न्तु । पु॒त्र॒का: । उ॒त । पुर॑म् । न । धृ॒ष्णु । अ॒र्च॒त॒ ॥९२.५॥
स्वर रहित मन्त्र
अर्चत प्रार्चत प्रियमेधासो अर्चत। अर्चन्तु पुत्रका उत पुरं न धृष्ण्वर्चत ॥
स्वर रहित पद पाठअर्चत । प्र । अर्चत । प्रियऽमेधास: । अर्चत ॥ अर्चन्तु । पुत्रका: । उत । पुरम् । न । धृष्णु । अर्चत ॥९२.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
मन्त्र ४-२१ परमात्मा के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(प्रियमेधासः) हे प्यारी [हितकारिणी] बुद्धिवाले पुरुषो ! (धृष्णु) निर्भय (पुरं न) गढ़ के समान [उस परमेश्वर] को (अर्चत) पूजो, (प्र) अच्छे प्रकार (अर्चत) पूजो, (अर्चत) पूजो, (अर्चत) पूजो, (उत) और (पुत्रकाः) गुणी सन्तानें [उस को] (अर्चन्तु) पूजें ॥॥
भावार्थ
मनुष्यों को चाहिये कि वे अपने पुत्र-पुत्रियों सहित प्रत्येक क्षण में, प्रत्येक पदार्थ में, प्रत्येक कर्म में परमात्मा की शक्ति को निहारकर आत्मा की उन्नति करें ॥॥
टिप्पणी
यह मन्त्र कुछ भेद से सामवेद में भी है-पू० ४।८।३ ॥ −(अर्चत) पूजयत-इन्द्रं, परमात्मानम् (प्र) प्रकर्षेण (अर्चत) (प्रियमेधासः) अ० २०।१०।२। प्रियमेध-असुक् जसि। प्रिया हितकरी मेधा प्रज्ञा येषां तत्सम्बुद्धौ (अर्चत) (अर्चन्तु) पूजयन्तु (पुत्रकाः) अनुकम्पायाम्। पा० ।३।७६। पुत्र-क प्रत्ययः। गुणिनः सन्तानाः (उत) अपि च (पुरम्) दुर्गम् (न) यथा (धृष्णु) निर्भयम् (अर्चते) ॥
विषय
प्रियमेध का प्रभु-पूजन
पदार्थ
१. (अर्चत) = उस प्रभु का पूजन करो, प्रार्थत खूब ही पूजन करो। (प्रियमेधास:) = हे यज्ञप्रिय लोगो! इन यज्ञों के द्वारा उस प्रभु का (अर्चत) = पूजन करो। २. (उत) = और (पुत्रका:) = [पुनाति, त्रायते] अपने जीवन को पवित्र करनेवाले व अपना त्राण करनेवाले लोग उस प्रभु का (अर्चन्तु) = पूजन करें। उस प्रभु का (अर्चत) = पूजन करो, जोकि (पुरं न) = पालन व पूरण करनेवाले के समान हैं तथा (धृष्णु) = शत्रुओं का धर्षण करनेवाले हैं।
भावार्थ
वे प्रभु हमारा पालन व पूरण करनेवाले है, हमारे शत्रुओं का धर्षण करनेवाले हैं। उस प्रभु का यज्ञों के द्वारा हम पूजन करें।
भाषार्थ
(प्रियमेधासः) हे उपासना-यज्ञ के प्यारो! (अर्चत) परमेश्वर की अर्चना किया करो, (प्रार्चत) प्रकृष्ट विधि से और प्रभूत अर्चना किया करो। (अर्चत) बार-बार अर्चना किया करो। (उत) और (पुत्रकाः) छोटे पुत्र तथा छोटी पुत्रियाँ भी (अर्चन्तु) अर्चना किया करें। (न) जैसे (पुरम्) तुम अपने देह की अर्चना करते हो, वैसे (धृष्णु) पाप-धर्षक ब्रह्म की (अर्चत) अर्चना किया करो।
टिप्पणी
[पुरम्=दिन-रात तथा पल-पल में, आयुपर्यन्त हम अपने शरीरों की देखभाल में, तथा पालन-पोषण में लगे रहते हैं, इसी लगन से परमेश्वर की अर्चना में भी लगना चाहिए। [मेधः=यज्ञः (निघं০ ३.१७)।]
विषय
ईश्वर स्तुति।
भावार्थ
हे (प्रियमेधासः) यज्ञ को या पवित्र आत्मा को या मेघ अर्थात् अन्न को प्रिय रूप से प्राप्त करने वाले साधक पुरुषो ! आप लोग उस परमेश्वर की (अर्चत) अर्चना करो (प्र अर्चत) खूब उपासना करो। (अर्चत) नित्य उपासना किया करो। हे (पुत्रकाः) पुरुष, आत्मा का नरक से त्राण चाहने वाले पुत्रो ! (उत) और तुम लोग (पुरं न) दुर्ग के समान (धृष्णु) शत्रु का घर्षण करने वाले उस परमेश्वर के अखण्ड रूप की (अर्चन्तु) उपासना करो, और (अर्चत) नित्य उपासना करो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१-१२ प्रिययेधः, १६-२१ पुरुहन्मा ऋषिः। इन्द्रो देवता। १-३ गायत्र्यः। ८, १३, १७, २१, १९ पंक्तयः। १४-१६, १८, २० बृहत्यः। शेषा अनुष्टुभः। एकविंशत्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Brhaspati Devata
Meaning
O lovers of Yajna, lovers of union and communion with the divine, adore and worship Indra, adore and worship again, worship again and again. Worship along with your children and grand children, just as the citizens adore and exalt a great city and the glorious ruler of the celestial city.
Translation
O performers and lovers of Yajna and intellect, You sing song of Almighty God like the fort free from fears, praise Him, adore Him and invoke Him. Let the children supplicate Him.
Translation
O performers and lovers of Yajna and intellect, You sing song of Almighty God like the fort free from fears, praise Him, adore Him and invoke Him. Let the children supplicate Him.
Translation
Let the sound-producing ‘Gargara’ (a mechanism like the mike) generate the times of the loftiest Vedic songs, and Godha’ (i.e., the station) spread these all around and the ‘Pinga’ (i.e., the receiving string or set) pick it up from all around and reproduce it for the king or the soul.
Footnote
To me it appears, the verse gives the perfect mechanism of the broadcasting system.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
यह मन्त्र कुछ भेद से सामवेद में भी है-पू० ४।८।३ ॥ −(अर्चत) पूजयत-इन्द्रं, परमात्मानम् (प्र) प्रकर्षेण (अर्चत) (प्रियमेधासः) अ० २०।१०।२। प्रियमेध-असुक् जसि। प्रिया हितकरी मेधा प्रज्ञा येषां तत्सम्बुद्धौ (अर्चत) (अर्चन्तु) पूजयन्तु (पुत्रकाः) अनुकम्पायाम्। पा० ।३।७६। पुत्र-क प्रत्ययः। गुणिनः सन्तानाः (उत) अपि च (पुरम्) दुर्गम् (न) यथा (धृष्णु) निर्भयम् (अर्चते) ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
মন্ত্রাঃ-৪-২১ পরমাত্মগুণোপদেশঃ
भाषार्थ
(প্রিয়মেধাসঃ) হে প্রিয় হিতকারী বুদ্ধিমান পুরুষগণ ! (ধৃষ্ণু) নির্ভয় (পুরং ন) দুর্গের সমান [প্রসিদ্ধ পরমেশ্বর] কে (অর্চত) পূজা করো, (প্র) উত্তমরূপে (অর্চত) পূজা করো, (অর্চত) পূজা করো, (অর্চত) পূজা করো, (উত) এবং (পুত্রকাঃ) গুণী সন্তানরাও [পরমেশ্বরকে] (অর্চন্তু) পূজা করুক ॥৫॥
भावार्थ
মনুষ্যগণের উচিত, নিজ পুত্র-কন্যা সহিত প্রত্যেক ক্ষণে, প্রত্যেক পদার্থে, প্রত্যেক কর্মে পরমাত্মার শক্তি উপলব্ধি করে আত্মার উন্নতি সাধন করা ॥৫॥ এই মন্ত্র সামান্য ভেদযুক্ত হয়ে সামবেদেও রয়েছে -পূ০ ৪।৮।৩ ॥
भाषार्थ
(প্রিয়মেধাসঃ) হে উপাসনা-যজ্ঞপ্রিয়! (অর্চত) পরমেশ্বরের অর্চনা করো, (প্রার্চত) প্রকৃষ্ট বিধিতে এবং প্রভূত অর্চনা করো। (অর্চত) বার-বার অর্চনা করো। (উত) এবং (পুত্রকাঃ) ছোটো পুত্র তথা ছোটো পুত্রীরাও (অর্চন্তু) অর্চনা করুক। (ন) যেমন (পুরম্) তুমি নিজের দেহের অর্চনা করো, তেমনই (ধৃষ্ণু) পাপ-ধর্ষক ব্রহ্মের (অর্চত) অর্চনা করো।
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal