अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 92/ मन्त्र 12
अ॑र्भ॒को न कु॑मार॒कोऽधि॑ तिष्ठ॒न्नवं॒ रथ॑म्। स प॑क्षन्महि॒षं मृ॒गं पि॒त्रे मा॒त्रे वि॑भु॒क्रतु॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒र्भ॒क: । न । कु॒मा॒र॒क: । अधि॑ । ति॒ष्ठ॒त् । नव॑म् । रथ॑म् ॥ स: । प॒क्ष॒त् । म॒हि॒षम् । मृ॒गम् । पि॒त्रे । मा॒त्रे । वि॒भुऽक्रतु॑म् ॥९२.१२॥
स्वर रहित मन्त्र
अर्भको न कुमारकोऽधि तिष्ठन्नवं रथम्। स पक्षन्महिषं मृगं पित्रे मात्रे विभुक्रतुम् ॥
स्वर रहित पद पाठअर्भक: । न । कुमारक: । अधि । तिष्ठत् । नवम् । रथम् ॥ स: । पक्षत् । महिषम् । मृगम् । पित्रे । मात्रे । विभुऽक्रतुम् ॥९२.१२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
मन्त्र ४-२१ परमात्मा के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(न) जैसे (कुमारकः) खिलाड़ी (अर्भकः) बालक (नवम्) नवे (रथम्) रथ पर (अधि तिष्ठत्) चढ़े। [वैसे ही] (सः) वह [जिज्ञासु] (मात्रे) माता के लिये और (पित्रे) पिता के लिये (महिषम्) महान् (मृगम्) खोजने योग्य (विभुक्रतुम्) व्यापक कर्मवाले [परमात्मा] को (पक्षत्) ग्रहण करे ॥१२॥
भावार्थ
जैसे छोटा बालक रथ आदि क्रीड़ा आदि वस्तुओं में प्रीति करता है, वैसे ही जिज्ञासु पुरुष माता-पिता की प्रसन्नता के लिये महान् परमात्मा में प्रीति करके अपना जीवन सुधारे ॥१२॥
टिप्पणी
१२−(अर्भकः) बालकः (न) यथा (कुमारकः) कुमार क्रीडायाम्-वुन्। क्रीडकः (अधितिष्ठत्) आरोहेत् (नवम्) नवीनम् (रथम्) यानम् (सः) जिज्ञासुः (पक्षत्) परिगृह्णीयात् (महिषम्) महान्तम् (मृगम्) मृग्यम्। अन्वेषणीयम् (पित्रे) पितृप्रसादाय (मात्रे) मातृप्रसादाय (विभुक्रतुम्) व्यापककर्माणं परमात्मानम् ॥
विषय
अर्भकः न, कुमारक:
पदार्थ
१. जीव को चाहिए कि (अर्भकः न) = एक छोटे बालक के समान हो। (कुमारक:) = वे सब क्रीडा करनेवाले हों। एक बालक के समान निर्दोष व्यवहारवाला हो-व्यर्थ में चुस्त-चालाक न बने। साथ ही क्रीडक की मनोवृत्तिवाला हो-खिझे नहीं। (नवं रथम् अधितिष्ठन्) = इस स्तुत्य [न स्तुतौ] व गतिशील [नव गती] शरीर-रथ पर आरूढ़ होता हुआ (स:) = वह (पित्रे मात्रे) = पिता व माता के लिए उस (महिषम) = पूजनीय [मह पूजायाम्] (मृगम्) = अन्वेषणीय (विभुक्रतम्) = सर्वव्यापक व प्रज्ञानस्वरूप प्रभु को (पक्षत्) = परिगृहीत करे। [पक्ष परिग्रहे]।
भावार्थ
हम बालकों की भाँति निर्दोष जीवनवाले बनें। शरीररूप रथ को स्तुत्य व गतिशील बनाएँ। प्रभु को ही माता व पिता समझें। ये प्रभु पूज्य हैं, अन्वेषणीय है, सर्वव्यापक व प्रज्ञानस्वरूप हैं।
भाषार्थ
(अर्भकः) छोटा बच्चा, जब (नवम्) नवीन तथा प्रशंसनीय (रथम्) शरीर-रथ में, (अधितिष्ठन्) स्थित होता है, अर्थात् शरीर धारण करता है, जन्म लेता है, वह बड़ा होकर यदि (कुमारकः न) कुत्सित कामवृत्तियोंवाले युवा के सदृश हो जाता है, तो (सः) वह (महिषं मृगम्) भैंसे तथा मृग आदि पशुओं को (पित्रे मात्रे) पिता और मातारूप में (पक्षत्) ग्रहण करता है, और (विभुक्रतुम्) विविध प्रकार के बहुत पाशविक-कर्मों का ग्रहण करता है।
टिप्पणी
[पक्षत्=पक्ष् परिग्रहे। कुमारकः=कु (कुत्सित)+मार (मारक कामवासना)। अभिप्राय यह कि भाग्यवश जीवात्मा मानुष शरीर धारण करके भी, यदि युवा होकर, कामादिवासनाओं से वासित हो जाता है, तो उसे फिर पाशविक शरीरों में जाकर विविध प्रकार के पाशविक कर्मो के भोग भोगने पड़ते हैं।]
विषय
ईश्वर स्तुति।
भावार्थ
(पित्रे मात्र) माँ बाप के लिये (अर्भकः) बच्चा (कुमारकः न) नया कुमार जिस प्रकार नये रथ पर चढ़कर जंगल में वीरता से जाता और मृग और महिषको पकड़ कर लाता और मा बाप के हर्ष का हेतु होता है उसी प्रकार वह योगाभ्यासी भी (अर्भकः) अति सूक्ष्म शरीर होकर (नवं रथं तिष्ठन्) नये रथ देह पर आरूढ़ होकर (सः) वह (विभुक्रतुम्) बड़े व्यापक ज्ञान और कर्म से युक्त महान् (मृगं) अति पवित्र एवं सबसे खोजने योग्य (महिषं) महान् दानी परमेश्वर को (पित्रे मात्रे) पिता माता के पद पर (पक्षत्) स्वीकार कर लेता है।
टिप्पणी
पक्षपरिग्रहे। स्वादिः।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१-१२ प्रिययेधः, १६-२१ पुरुहन्मा ऋषिः। इन्द्रो देवता। १-३ गायत्र्यः। ८, १३, १७, २१, १९ पंक्तयः। १४-१६, १८, २० बृहत्यः। शेषा अनुष्टुभः। एकविंशत्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Brhaspati Devata
Meaning
Neither a child nor an adolescent, the man of mature mind abiding in a healthy body practices meditation and realises the great, supreme, omnipotent cosmic soul of universal holy action for the enlightenment of all about Mother Nature and the father of creation.
Translation
As a young child mounts his newly fashioned car so the Almighty God for the sun and for the earth (pitre matre) holds the vast cloud of which serves multtifarious purposes.
Translation
As a young child mounts his newly fashioned car so the Almighty God for the sun and for the earth (pitre matre) holds the vast cloud of which serves multifarious purposes.
Translation
O powerful controller of mental power, be fully stationed in your state of radiant spirituality. Then we shall both (i.e., husband and wife, preceptor and disciple) together attain the heavenly highest state of bliss of thousand powers of stable tranquility and calmness, effulgent, peaceful and serene, free from all sin and evil.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१२−(अर्भकः) बालकः (न) यथा (कुमारकः) कुमार क्रीडायाम्-वुन्। क्रीडकः (अधितिष्ठत्) आरोहेत् (नवम्) नवीनम् (रथम्) यानम् (सः) जिज्ञासुः (पक्षत्) परिगृह्णीयात् (महिषम्) महान्तम् (मृगम्) मृग्यम्। अन्वेषणीयम् (पित्रे) पितृप्रसादाय (मात्रे) मातृप्रसादाय (विभुक्रतुम्) व्यापककर्माणं परमात्मानम् ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
মন্ত্রাঃ-৪-২১ পরমাত্মগুণোপদেশঃ
भाषार्थ
(ন) যেমন (কুমারকঃ) কুমার (অর্ভকঃ) বালক (নবম্) নবীন/নতুন (রথম্) রথে (অধি তিষ্ঠৎ) আরোহণ করে। [তেমনই] (সঃ) সেই [জিজ্ঞাসু] (মাত্রে) মাতার জন্য এবং (পিত্রে) পিতার জন্য (মহিষম্) মহান্ (মৃগম্) অন্বেষণযোগ্য (বিভুক্রতুম্) ব্যাপক কর্মযুক্ত [পরমাত্মা]কে (পক্ষৎ) গ্রহণ করে ॥১২॥
भावार्थ
যেভাবে ছোট্ট বালক রথাদি খেলনা বস্তুর প্রতি প্রীতি করে, তেমনই জিজ্ঞাসু পুরুষ মাতা-পিতার প্রসন্নতার জন্য মহান্ পরমাত্মার প্রতি প্রীতি দ্বারা নিজের জীবনকে সংশোধিত করে/করুক ॥১২॥
भाषार्थ
(অর্ভকঃ) ছোটো শিশু, যখন (নবম্) নবীন তথা প্রশংসনীয় (রথম্) শরীর-রথে, (অধিতিষ্ঠন্) স্থিত হয়, অর্থাৎ শরীর ধারণ করে, জন্মগ্রহণ করে, সে বড়া হয়ে যদি (কুমারকঃ ন) কুৎসিত কামবৃত্তিসম্পন্ন যুবকের সদৃশ হয়, তবে (সঃ) সে (মহিষং মৃগম্) মহিষ তথা মৃগ আদি পশুদের (পিত্রে মাত্রে) পিতা এবং মাতারূপে (পক্ষৎ) গ্রহণ করে, এবং (বিভুক্রতুম্) বিবিধ প্রকারের বহু পাশবিক-কর্মের গ্রহণ করে।
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