अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 92/ मन्त्र 19
अषा॑ढमु॒ग्रं पृत॑नासु सास॒हिं यस्मि॑न्म॒हीरु॑रु॒ज्रयः॑। सं धे॒नवो॒ जाय॑माने अनोनवु॒र्द्यावः॒ क्षामो॑ अनोनवुः ॥
स्वर सहित पद पाठअषा॑ल्हम् । उ॒ग्रम् । पृत॑नासु । स॒स॒हिम् । यस्मि॑न् । म॒ही: । उ॒रु॒ऽज्रय॑: ॥ सम् । धे॒नव॑: । जाय॑माने । अ॒नो॒न॒वु॒: । द्याव॑: । क्षाम॑: । अ॒नो॒न॒वु॒: ॥९२.१९॥
स्वर रहित मन्त्र
अषाढमुग्रं पृतनासु सासहिं यस्मिन्महीरुरुज्रयः। सं धेनवो जायमाने अनोनवुर्द्यावः क्षामो अनोनवुः ॥
स्वर रहित पद पाठअषाल्हम् । उग्रम् । पृतनासु । ससहिम् । यस्मिन् । मही: । उरुऽज्रय: ॥ सम् । धेनव: । जायमाने । अनोनवु: । द्याव: । क्षाम: । अनोनवु: ॥९२.१९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
मन्त्र ४-२१ परमात्मा के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(यस्मिन् जायमाने) जिस [परमात्मा] के प्रकट होने पर (महीः) पृथिवियाँ (उरुज्रयः) बहुत चलनेवाली होती हैं, (अषाढम्) उस अजेय, (उग्रम्) तेजस्वी, और (पृतनासु) सङ्ग्रामों में (सासहिम्) जितानेवाले [परमेश्वर] को (धेनवः) वाणियों ने (सम्) मिलकर (अनोनवुः) अत्यन्त सराहा है, (द्यावः) सूर्यों और (क्षामः) भूमियों ने (अनोनवुः) अत्यन्त सराहा है ॥१९॥
भावार्थ
जब परमात्मा अपने सामर्थ्य को प्रकट करता है, तब सब पृथिवी आदि लोक उत्पन्न होते हैं, और उसकी अद्भुत महिमा को सूर्य पृथिवी आदि लोकों में देखकर सब प्राणी आनन्द पाते हैं ॥१९॥
टिप्पणी
१९−(अषाढम्) षह मर्षणे अभिभवे-क्त, ओकारस्य आकारः। असोढम्। अनभिभूतम् (उग्रम्) तेजस्विनम् (पृतनासु) सङ्ग्रामेषु (सासहिम्) अ० ३।१८।। अभिभवितारम्। विजयकारकम् (यस्मिन्) परमात्मनि (महीः) पृथिव्यः (उरुज्रयः) ज्रयतिर्गतिकर्मा-निघ० २।१४। वातेर्डिच्च। उ० ४।१३४। ज्रि गतौ-इण्, डित्। बहुगतिशीलाः (सम्) एकीभूय (धेनवः) प्रीणयित्र्यो वाचः (जायमाने) प्रकटीभूयमाने (अनोनवुः) णु स्तुतौ-यङ्लुकि लङ्। भृशमस्तुवन् (द्यावः) सूर्य्याः (क्षामः) पृथिव्यः (अनोनवुः) ॥
विषय
द्यावः क्षामः अनोनवुः
पदार्थ
१. (द्याव:) = द्युलोक में होनेवाले ये सूर्य व (क्षामः) = पृथिवीलोक उस प्रभु का (अनोन:) = अतिशयेन स्तवन करते है, जो प्रभु (अषाढम्) = शत्रुओं से कभी पराभूत नहीं होते, (उग्रम्) = उद्गुर्ण बलवाले व तेजस्वी हैं तथा (पृतनासु) = शत्रुसैन्यों का (सासहिम्) = पराभव करनेवाले हैं। २. (यस्मिन् जायमाने) = जिसके प्रादुर्भू होने पर (मही:) = महत्त्वपूर्ण (उरुजय:) = महान् वेगवाली, अर्थात् हमें क्रियाओं में प्रेरित करनेवाली (धेनवः) = वेदवाणीरूप गौएँ (सम् अनोन:) = सम्यक् शब्दायमान हो उठती हैं। हृदय में प्रभु का प्रकाश होने पर ये वेदवाणियाँ हमें उस-उस क्रिया में प्रेरित करनेवाली होती है। इन वेदवाणियों के रूप में ही हमें प्रभु की प्रेरणाएँ सुन पड़ती हैं।
भावार्थ
ये सूर्य आदि पदार्थ प्रभु की ही महिमा का प्रकाश हैं। हृदय में प्रभु का प्रकाश होने पर वेदवाणी हमारे लिए उत्कृष्ट कर्मों की प्रेरणा देनेवाली होती है।
भाषार्थ
(यस्मिन्) जिस परमेश्वर के (जायमाने) प्रकट होते हुए—(अषाल्हम्) अपराभवनीय, (उग्रम्) न्यायव्यवस्था में उग्ररूप, (पृतनासु) कामादि के नाना वर्गों के उपस्थित हो जाने पर भी (सासहिम्) उनका पूर्णप्रभाव करनेवाले जिस परमेश्वर की (सम् अनोनवुः) स्तुतियाँ सब लोकलोकान्तर मिलकर कर रहे हैं, (धेनवः) वेदवाणियाँ भी उसी परमेश्वर की (सम् अनोनवुः) मिलकर सम्यक् स्तुतियाँ कर रही हैं। (उरुज्रयः) तथा महावेगी (महीः द्यावः) महा-द्योतमान सूर्य, नक्षत्र, तारागण, तथा महापरिमाणी (क्षामः) पृथिवी भी उसी की स्तुतियाँ कर रहे हैं।
टिप्पणी
[धेनवः=धेनुः वाक् (निघं০ १.११)। उरुज्रयः=बहुजवाः (निरु০ १२.४.४३)।]
विषय
ईश्वर स्तुति।
भावार्थ
(यस्मिन् जायमाने) जिसके प्रकट होने पर (धेनवः) दुग्ध दोहन करने वाली गौओं के समान नाना ऐश्वर्य से राष्ट्र को पूर्ण करने वाली प्रज्ञा जिस प्रकार (अषाल्हम्) उस पराक्रमी, (उग्रम्) भयङ्कर; सदा बलवान्, (पृतनासु सासहिम्) शत्रु सेनाओं पर विजय करने वाले राजा की स्तुति करते हैं उसी प्रकार जिस परमेश्वर या आत्मा के प्रकट हो जाने पर (महीः द्यावः) बड़े बड़े तेजस्वी सूर्य के समान विद्वान् गण (मही क्षामः) बड़ी पृथिवीयां, उनके निवासीजन भी (उरुज्रयः) विशाल स्तुतियों से युक्त होकर (अनोनवुः) नित्य स्तुति करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१-१२ प्रिययेधः, १६-२१ पुरुहन्मा ऋषिः। इन्द्रो देवता। १-३ गायत्र्यः। ८, १३, १७, २१, १९ पंक्तयः। १४-१६, १८, २० बृहत्यः। शेषा अनुष्टुभः। एकविंशत्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Brhaspati Devata
Meaning
Unchallengeable, awful, victorious in cosmic dynamics, in whose pervasive presence great and tempestuous stars and planets, earths and heavens, all in unison move in order and do homage in reverence, such is Indra.
Translation
The vedic hymn adore Him and also the earth and heaven bow to Him on whose manifestation the grand celestial and terrestrial bodies, bear motion, who is the potent conqueror and invincible in war.
Translation
The vedic hymn adore Him and also the earth and heaven bow to Him on whose manifestation the grand celestial and terrestrial bodies, bear motion, who is the potent conqueror and invincible in war.
Translation
See Ath. 20.81. 1.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१९−(अषाढम्) षह मर्षणे अभिभवे-क्त, ओकारस्य आकारः। असोढम्। अनभिभूतम् (उग्रम्) तेजस्विनम् (पृतनासु) सङ्ग्रामेषु (सासहिम्) अ० ३।१८।। अभिभवितारम्। विजयकारकम् (यस्मिन्) परमात्मनि (महीः) पृथिव्यः (उरुज्रयः) ज्रयतिर्गतिकर्मा-निघ० २।१४। वातेर्डिच्च। उ० ४।१३४। ज्रि गतौ-इण्, डित्। बहुगतिशीलाः (सम्) एकीभूय (धेनवः) प्रीणयित्र्यो वाचः (जायमाने) प्रकटीभूयमाने (अनोनवुः) णु स्तुतौ-यङ्लुकि लङ्। भृशमस्तुवन् (द्यावः) सूर्य्याः (क्षामः) पृथिव्यः (अनोनवुः) ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
মন্ত্রাঃ-৪-২১ পরমাত্মগুণোপদেশঃ
भाषार्थ
(যস্মিন্ জায়মানে) যে [পরমাত্মা] প্রকট হলে (মহীঃ) পৃথিব্যাদি লোকসমূহ (উরুজ্রয়ঃ) বহু গতিশীল হয়, (অষাঢম্) সেই অজেয়, (উগ্রম্) তেজস্বী এবং (পৃতনাসু) সংগ্রামে (সাসহিম্) বিজয় প্রদানকারীকে [পরমেশ্বরকে] (ধেনবঃ) বাণীসমূহ (সম্) একসাথে (অনোনবুঃ) অত্যন্ত স্ততি করেছে, (দ্যাবঃ) সূর্যসমূহ এবং (ক্ষামঃ) ভূমিসমূহ (অনোনবুঃ) অত্যন্ত স্তুতি করেছেন ॥১৯॥
भावार्थ
যখন পরমাত্মা নিজ সামর্থ্য প্রকট করেন, তখন পৃথিব্যাদি লোক উৎপন্ন হয় এবং উনার অদ্ভুত মহিমা সূর্য, পৃথিব্যাদি লোকসমূহে দর্শন করে সকল প্রাণী আনন্দিত হয় ॥১৯॥
भाषार्थ
(যস্মিন্) যে পরমেশ্বরের (জায়মানে) প্রকটিত—(অষাল্হম্) অপরাভবনীয়/অপরাজেয়, (উগ্রম্) ন্যায়ব্যবস্থায় উগ্ররূপ, (পৃতনাসু) কামাদির নানা বর্গ উপস্থিত হলেও (সাসহিম্) সেগুলোর পূর্ণপ্রভাবক যে পরমেশ্বরের (সম্ অনোনবুঃ) স্তুতি সব লোকলোকান্তর মিলে করছে, (ধেনবঃ) বেদবাণীও সেই পরমেশ্বরের (সম্ অনোনবুঃ) একসাথে সম্যক্ স্তুতি করছে। (উরুজ্রয়ঃ) তথা মহাবেগী (মহীঃ দ্যাবঃ) মহা-দ্যোতমান সূর্য, নক্ষত্র, তারাগণ, তথা মহাপরিমাণী (ক্ষামঃ) পৃথিবীও উনার স্তুতি করছে।
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