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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 92/ मन्त्र 5
    सूक्त - प्रियमेधः देवता - इन्द्रः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-९२

    अर्च॑त॒ प्रार्च॑त॒ प्रिय॑मेधासो॒ अर्च॑त। अर्च॑न्तु पुत्र॒का उ॒त पुरं॒ न धृ॒ष्ण्वर्चत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अर्च॑त । प्र । अ॒र्च॒त॒ । प्रिय॑ऽमेधास: । अर्च॑त ॥ अर्च॑न्तु । पु॒त्र॒का: । उ॒त । पुर॑म् । न । धृ॒ष्णु । अ॒र्च॒त॒ ॥९२.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अर्चत प्रार्चत प्रियमेधासो अर्चत। अर्चन्तु पुत्रका उत पुरं न धृष्ण्वर्चत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अर्चत । प्र । अर्चत । प्रियऽमेधास: । अर्चत ॥ अर्चन्तु । पुत्रका: । उत । पुरम् । न । धृष्णु । अर्चत ॥९२.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 92; मन्त्र » 5

    भाषार्थ -
    (प्रियमेधासः) हे उपासना-यज्ञ के प्यारो! (अर्चत) परमेश्वर की अर्चना किया करो, (प्रार्चत) प्रकृष्ट विधि से और प्रभूत अर्चना किया करो। (अर्चत) बार-बार अर्चना किया करो। (उत) और (पुत्रकाः) छोटे पुत्र तथा छोटी पुत्रियाँ भी (अर्चन्तु) अर्चना किया करें। (न) जैसे (पुरम्) तुम अपने देह की अर्चना करते हो, वैसे (धृष्णु) पाप-धर्षक ब्रह्म की (अर्चत) अर्चना किया करो।

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