अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 23/ मन्त्र 12
ह॒तासो॑ अस्य वे॒शसो॑ ह॒तासः॒ परि॑वेशसः। अथो॒ ये क्षु॑ल्ल॒का इ॑व॒ सर्वे॒ ते क्रिम॑यो ह॒ताः ॥
स्वर सहित पद पाठह॒तास॑: । अ॒स्य॒ । वेशस॑: । ह॒तास॑: । परि॑ऽवेशस: । अथो॒ इति॑ । ये । क्षु॒ल्ल॒का:ऽइ॑व । सर्वे॑ । ते । क्रिम॑य: । ह॒ता: ॥२३.१२॥
स्वर रहित मन्त्र
हतासो अस्य वेशसो हतासः परिवेशसः। अथो ये क्षुल्लका इव सर्वे ते क्रिमयो हताः ॥
स्वर रहित पद पाठहतास: । अस्य । वेशस: । हतास: । परिऽवेशस: । अथो इति । ये । क्षुल्लका:ऽइव । सर्वे । ते । क्रिमय: । हता: ॥२३.१२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 23; मन्त्र » 12
भाषार्थ -
(अस्य) इस राजारूप क्रिमि के (वेशस:१ ) समीप बैठनेवाले क्रिमि (हतासः ) मर गये हैं और (परिवेशसः) इसे घेरकर दूर बैठनेवाले भी (हतासः) मर गये हैं। (अथो) तथा (ये) जो (क्षुल्लकाः इव) क्षुद्र के सदृश हैं (ते सर्वे ) वे सब (क्रिमयः) क्रिमि (हताः) मर गये हैं।
टिप्पणी -
[मन्त्र ११ में राजा और स्थपति का वर्णन हुआ है, अत: मन्त्र १२ में उनमें मन्त्रियों और सभासदों का वर्णन अभिप्रेत है। वेशसः हैं मन्त्री, और परिवेशस: हैं सभा के सभासद् तथा क्षुल्लकाः हैं नौकर चाकर, जोकि क्षत अर्थात क्षुधा के निवारणार्थ नौकरी करते हैं। इस प्रकार सामान्य घटना के द्वारा शासन-तत्त्वों का भी कथन हुआ है।] [१. वेशसः= प्रविष्टाः, समीपस्थाः (विश् प्रवेशने, तुदादि:)। परिवेशसः= परितः प्रविष्टाः, दूरस्था:।]