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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 23

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 23/ मन्त्र 8
    सूक्त - कण्वः देवता - इन्द्रः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - कृमिघ्न सूक्त

    ह॒तो येवा॑षः॒ क्रिमी॑णां ह॒तो न॑दनि॒मोत। सर्वा॒न्नि म॑ष्म॒षाक॑रं दृ॒षदा॒ खल्वाँ॑ इव ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ह॒त: । येवा॑ष: । क्रिमी॑णाम् । ह॒त: । न॒द॒नि॒मा । उ॒त । सर्वा॑न् । नि । म॒ष्म॒षा । अ॒क॒र॒म् । दृ॒षदा॑ । खल्वा॑न्ऽइव ॥२३.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    हतो येवाषः क्रिमीणां हतो नदनिमोत। सर्वान्नि मष्मषाकरं दृषदा खल्वाँ इव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    हत: । येवाष: । क्रिमीणाम् । हत: । नदनिमा । उत । सर्वान् । नि । मष्मषा । अकरम् । दृषदा । खल्वान्ऽइव ॥२३.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 23; मन्त्र » 8

    भाषार्थ -
    (क्रिमीणाम्) क्रिमियों में (येवाष:) सुप्तावस्था का जुगुप्सित क्रिमि (हतः) मार दिया है, (उत) तथा (नदनिमा) नाद करनेवाला अर्थात् जाग्रदवस्था का क्रिमि (हतः) मार दिया है। (सर्वान्) इस प्रकार सब क्रिमियों को (मष्मषा, नि+अकरम्) मैंने नितरां हिंसित कर दिया है, (इव) जैसेकि (दृषदा) पत्थर द्वारा (खल्वान्) चनों को पीस दिया जाता है। [हिंसित किया जाता है।]

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