अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 25/ मन्त्र 10
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - योनिः, गर्भः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - गर्भाधान सूक्त
धातः॒ श्रेष्ठे॑न रू॒पेणा॒स्या नार्या॑ गवी॒न्योः। पुमां॑सं पु॒त्रमा धे॑हि दश॒मे मा॒सि सूत॑वे ॥
स्वर सहित पद पाठधात॑: । श्रेष्ठे॑न । रू॒पेण॑ । अ॒स्या: । नार्या॑: । ग॒वी॒न्यो: । पुमां॑सम् । पु॒त्रम् । आ । धे॒हि॒ । द॒श॒मे । मा॒सि । सूत॑वे ॥२५.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
धातः श्रेष्ठेन रूपेणास्या नार्या गवीन्योः। पुमांसं पुत्रमा धेहि दशमे मासि सूतवे ॥
स्वर रहित पद पाठधात: । श्रेष्ठेन । रूपेण । अस्या: । नार्या: । गवीन्यो: । पुमांसम् । पुत्रम् । आ । धेहि । दशमे । मासि । सूतवे ॥२५.१०॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 25; मन्त्र » 10
भाषार्थ -
(धात:) धारण करनेवाले हे परमेश्वर ! (श्रेष्ठेन रूपेण) श्रेष्ठ रूपाकृति से संयुक्त [ पुत्र के लिए ] ( अस्या: नार्या: गवीन्योः) इस नारी की दो गवीनी-नाड़ियों में (पुमांसम्, पुत्रम्) पुमान पुत्र [ के उत्पादक वीर्यं ] का आधान कर, (दशमे मासि) दसवें मास में (सूतवे) उत्पन्न होने के लिए ।
टिप्पणी -
[गवीनिका दो गर्भस्थ नाड़ियां है, जिन द्वारा वीर्य गुज़रकर, गर्भाशय में जाता है। इन्हें (Fallopian ducts)१ कहते हैं। गवीनिके=योने: पार्श्ववर्तिन्यौ निर्गमन-प्रतिबन्धिके नाड्यौ (अथर्व० १।११।५; १।३।६) (सायण)। इन्हें 'गवीनिका' सम्भवतः इसलिए कहते हैं कि ये वीर्य को गर्भाशय में ले-जाती हैं; गो (गम्) + नीञ् (प्रापणे)। पत्नी में वीर्याधान तो पति ने हो करना है, परन्तु इसकी सफलता परमेश्वर की कृपा से होनी है, अतः धाता को वीर्याघायक कहा है।] [१. Two tubes or ducts through which the ova pass from the ovary to the uterus in the human subject (Twentieth century dictionary), oviducts]