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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 25

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 25/ मन्त्र 9
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - योनिः, गर्भः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - गर्भाधान सूक्त

    वि जि॑हीष्व बार्हत्सामे॒ गर्भ॑स्ते॒ योनि॒मा श॑याम्। अदु॑ष्टे दे॒वाः पु॒त्रं सो॑म॒पा उ॑भया॒विन॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि । जि॒ही॒ष्व॒ । बा॒र्ह॒त्ऽसा॒मे॒ । गर्भ॑:। ते॒ । योनि॑म् । आ । श॒या॒म् । अदु॑: । ते॒ । दे॒वा: । पु॒त्रम् । सो॒म॒ऽपा: । उ॒भ॒या॒विन॑म् ॥२५.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वि जिहीष्व बार्हत्सामे गर्भस्ते योनिमा शयाम्। अदुष्टे देवाः पुत्रं सोमपा उभयाविनम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वि । जिहीष्व । बार्हत्ऽसामे । गर्भ:। ते । योनिम् । आ । शयाम् । अदु: । ते । देवा: । पुत्रम् । सोमऽपा: । उभयाविनम् ॥२५.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 25; मन्त्र » 9

    भाषार्थ -
    (बार्हत्सामे) महाशान्तिवाली हे पत्नि! (विजिहीष्व) तू [पति से] विगत हो जा, उससे भोग का सम्बन्ध त्याग दे। ( गर्भ: ) गर्भस्थ शिशु (ते योनिम्) तेरी योनि में (आशये१) पूर्णतया सोता रहे। (सोमपाः देवाः) सोम-ओषधि के पीनेवाले दिव्य पुरुषों ने (ते) तेरे लिए ( पुत्रम्, अदुः ) पुत्र दिया है, जोकि (उभयाविनम्) तुम दोनों की रक्षा करनेवाला है या अभ्युदय और निःश्रेयस का रक्षक है।

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