अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 25/ मन्त्र 6
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - योनिः, गर्भः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - गर्भाधान सूक्त
यद्वेद॒ राजा॒ वरु॑णो॒ यद्वा॑ दे॒वी सर॑स्वती। यदिन्द्रो॑ वृत्र॒हा वेद॒ तद्ग॑र्भ॒कर॑णं पिब ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । वेद॑। राजा॑ । वरु॑ण: । यत् । वा॒। दे॒वी । सर॑स्वती। यत् । इन्द्र॑: । वृ॒त्र॒ऽहा । वेद॑ । तत् । ग॒र्भ॒ऽकर॑णम् । पि॒ब॒ ॥२५.६॥
स्वर रहित मन्त्र
यद्वेद राजा वरुणो यद्वा देवी सरस्वती। यदिन्द्रो वृत्रहा वेद तद्गर्भकरणं पिब ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । वेद। राजा । वरुण: । यत् । वा। देवी । सरस्वती। यत् । इन्द्र: । वृत्रऽहा । वेद । तत् । गर्भऽकरणम् । पिब ॥२५.६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 25; मन्त्र » 6
भाषार्थ -
(राजा) राजमान अर्थात् [ विवाहकाल में] शोभायमान, (वरुणः) वरण करनेवाला 'वर' ( यद) जिस औषध को (वेद) जानता है, (वा) अथवा (यद्) जिस औषध को (सरस्वती) विज्ञानवती विदुषी तु [ वेद] जानती है; (यद्) जिस औषध को (वृत्रहा) गर्भ के वृत्रों अर्थात् आवरण करनेवाले रोगों का हनन करनेवाला (इन्द्रः) ज्ञानेश्वैर्य-सम्पन्न वैद्य जानता है, (गर्भकरणम्) गर्भकारी ( तत् ) उस औषध को (पिव) तू पी, या पिया कर।
टिप्पणी -
[सरस्वती= विज्ञानवती पत्नी (मन्त्र ३)। पति निज पत्नी के प्रति कहता है। गर्भकरण औषध="यानि भद्राणि बीजान्यृषभा जनयन्ति च। तैस्त्वं पुत्रं विन्दस्व सा प्रसुर्धेनुका भव (अथर्व० ३।२३।४-५)। ऋषभा:=ऋषभ ओषधियाँ। प्रसूः= पुत्र प्रसव करनेवाली। धेनुका=दुधार गौ की तरह दूध देनेवाली अल्प गोरूपा, हे पत्नी ! तु हो जा। सन्तानोत्पत्ति पर दूध देनेवालो हो जा।]