अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 25/ मन्त्र 3
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - योनिः, गर्भः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - गर्भाधान सूक्त
गर्भं॑ धेहि सिनीवालि॒ गर्भं॑ धेहि सरस्वति। गर्भं॑ ते अ॒श्विनो॒भा ध॑त्तां॒ पुष्क॑रस्रजा ॥
स्वर सहित पद पाठगर्भ॑म् । धे॒हि॒ । सि॒नी॒वा॒लि॒ । गर्भ॑म् । धे॒हि॒ । स॒र॒स्व॒ति॒। गर्भ॑म् । ते॒ । अ॒श्विना॑ । उ॒भा । आ । ध॒त्ता॒म् । पुष्क॑रऽस्रजा ॥२५.३॥
स्वर रहित मन्त्र
गर्भं धेहि सिनीवालि गर्भं धेहि सरस्वति। गर्भं ते अश्विनोभा धत्तां पुष्करस्रजा ॥
स्वर रहित पद पाठगर्भम् । धेहि । सिनीवालि । गर्भम् । धेहि । सरस्वति। गर्भम् । ते । अश्विना । उभा । आ । धत्ताम् । पुष्करऽस्रजा ॥२५.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 25; मन्त्र » 3
भाषार्थ -
(सिनीवालि१) हे प्रभूत अन्नवाली तथा सुन्दर केशोंवाली ! (गर्भम् धेहि) तू गर्भ का धारण कर, (सरस्वति) हे [ज्ञान] विज्ञानवाली! (गर्भम् धेहि) गर्भ का तू धारण कर। (पुष्करस्रजा) पुष्टिकारक अन्न का सर्जन करनेवाले, (उभौ) दोनों (अश्विनौ) सूर्य और चन्द्रमा (ते, गर्भम्, धत्ताम्) तेरे गर्भ का धारण-पोषण करें।
टिप्पणी -
[सिनम् =अन्नम् (निरुक्त ५।१।५; पद २८) । वाल = केश । सरस्वती= सरः [ज्ञानम् ] विज्ञाम् तद्वती (उणा० ४।१९०, दयानन्द)। धेहि =धि धारणे (तुदादिः)। अश्विनौ= सूर्याचन्द्रमसौ (निरुक्त १२।१।१; अश्विनौ पद-संख्या (१)। इन द्वारा अन्नोत्पादन होता है, अतः ये पुष्टि कारक अन्न के स्रष्टा हैं।] [१. वालि=वालिनी, "ई" प्रत्यय छान्दस। "छन्दसी वनियौ च वक्तव्यो" वार्तिक (अष्टा०५।२।१०९)।]