अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 25/ मन्त्र 1
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - योनिः, गर्भः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - गर्भाधान सूक्त
पर्व॑ताद्दि॒वो योने॒रङ्गा॑दङ्गात्स॒माभृ॑तम्। शेपो॒ गर्भ॑स्य रेतो॒धाः सरौ॑ प॒र्णमि॒वा द॑धत् ॥
स्वर सहित पद पाठपर्व॑तात् । दि॒व: । योने॑: । अङ्गा॑त्ऽअङ्गात् । स॒म्ऽआभृ॑तम् । शेप॑: । गर्भ॑स्य । रे॒त॒:ऽधा । सरौ॑ । प॒र्णम्ऽइ॑व । आ । द॒ध॒त् ॥२५.१॥
स्वर रहित मन्त्र
पर्वताद्दिवो योनेरङ्गादङ्गात्समाभृतम्। शेपो गर्भस्य रेतोधाः सरौ पर्णमिवा दधत् ॥
स्वर रहित पद पाठपर्वतात् । दिव: । योने: । अङ्गात्ऽअङ्गात् । सम्ऽआभृतम् । शेप: । गर्भस्य । रेत:ऽधा । सरौ । पर्णम्ऽइव । आ । दधत् ॥२५.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 25; मन्त्र » 1
भाषार्थ -
(पर्वतात्) पर्वत [की ओषधियों] से, (दिवः योनेः) द्युलोक की योनिरूप परमेश्वर [की कृपा] से, (अङ्गात्, अङ्गात्) शरीर के अङ्ग-अङ्ग से (समाभृतम् =समाहृतम्) एकत्रित हुए, (गर्भस्य रेतोधाः) गर्भ सम्बन्धी रेतस् अर्थात् वीर्य का आधान करनेवाला, (शेप:) लिङ्गेन्द्रिय१, (आ दधतु) [मातृयोनि में] वीर्याधान करे, (इव) जैसेकि [धनुर्धारी], (सरौ) सरण करनेवाले इषु में ( पर्णम् ) पंख का (आ दधत्) आधान करता है।
टिप्पणी -
[मन्त्रपदों में वर्णनीय वस्तु का संकेत ही हुआ है, जिसका स्पष्ट वर्णन मन्त्र के भाष्य में कर दिया है। परमेश्वर द्युलोक की योनि अर्थात् कारण है। जैसे वह ऋग्वेदादि शास्त्र की योनि है ('शास्त्रयोनित्वात् वेदान्तशास्त्र १.१.३), वैसे वह द्युलोक की भी योनि है।] [१. उत्पन्न रेतस् का प्रथम धारण लिङ्गेन्द्रिय में होता है, तत्पश्चात् तद्द्वारा मातृयोनि में।]