अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 25/ मन्त्र 2
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - योनिः, गर्भः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - गर्भाधान सूक्त
यथे॒यं पृ॑थि॒वी म॒ही भू॒तानां॒ गर्भ॑माद॒धे। ए॒वा द॑धामि ते॒ गर्भं॒ तस्मै॒ त्वामव॑से हुवे ॥
स्वर सहित पद पाठयथा॑ । इ॒यम् । पृ॒थि॒वी । म॒ही । भू॒ताना॑म् । गर्भ॑म् । आ॒ऽद॒धे ।ए॒व । आ । द॒धा॒मि॒ । ते॒ । गर्भ॑म् । तस्मै॑ । त्वाम् । अव॑से । हु॒वे॒ ॥२५.२॥
स्वर रहित मन्त्र
यथेयं पृथिवी मही भूतानां गर्भमादधे। एवा दधामि ते गर्भं तस्मै त्वामवसे हुवे ॥
स्वर रहित पद पाठयथा । इयम् । पृथिवी । मही । भूतानाम् । गर्भम् । आऽदधे ।एव । आ । दधामि । ते । गर्भम् । तस्मै । त्वाम् । अवसे । हुवे ॥२५.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 25; मन्त्र » 2
भाषार्थ -
(यथा) जैसे (इयम् मही पृथिवी) यह महती या मंहनीया पृथिवी (भूतानाम्) प्राणियों सम्बन्धी (गर्भम्) गर्भ के कारणीभूत बीज को (आ दधे) अपने में आहित करती है, (एवम् एव) इसी प्रकार [ हे पत्नी!] (ते) तेरे लिए (गर्भम्) गर्भ का ( आ दधामि) मैं आधान करता हूँ और (तस्मै) उस गर्भ के लिए, (अवसे) अर्थात् उसकी रक्षा के लिए, ( त्वाम्) तुझे (हुवे) आहूत करता हूँ। बीज से बीजान्न की उत्पत्ति, उसके भक्षण से वीर्य की उत्पत्ति और वीर्य से प्राणियों की उत्पत्ति। जैसे कहा है 'अन्नाद् रेतः रेतसः पुरुषः स वा एष पुरुषोऽन्नरसमयः' (तै०उ० ब्रह्मानन्दवल्ली; सत्यार्थप्रकाश, प्रथम समुल्लास) इस प्रकार पृथिवी का गर्भ धारण करना, परम्परा से, भूतों अर्थात् प्राणियों की उत्पत्ति का कारण है।