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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 29

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 29/ मन्त्र 8
    सूक्त - चातनः देवता - जातवेदाः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - रक्षोघ्न सूक्त

    अ॒पां मा॒ पाने॑ यत॒मो द॒दम्भ॑ क्र॒व्याद्या॑तू॒नां शय॑ने॒ शया॑नम्। तदा॒त्मना॑ प्र॒जया॑ पिशा॒चा वि या॑तयन्तामग॒दो॒यम॑स्तु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒पाम् । मा॒ । पाने॑ । य॒त॒म: । द॒दम्भ॑ । क्र॒व्य॒ऽअत् । या॒तू॒नाम् । शय॑ने । शया॑नम् । ॥२९.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपां मा पाने यतमो ददम्भ क्रव्याद्यातूनां शयने शयानम्। तदात्मना प्रजया पिशाचा वि यातयन्तामगदोयमस्तु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अपाम् । मा । पाने । यतम: । ददम्भ । क्रव्यऽअत् । यातूनाम् । शयने । शयानम् । ॥२९.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 29; मन्त्र » 8

    भाषार्थ -
    (यातूनाम्) यातना देनेवाले रोज-जीवाणुओं में (यतमः) जिस किसी (क्रव्याद्) कच्चामांस खानेवाले रोग-जीवाणु ने, ( शयने शयानम् ) शय्या में सोते हुए, या (अपाम् पाने) जलपान में ( माँ ददम्भ ) मुझे हिंसित किया है, रुग्ण किया है, (तत् ) तो वह क्रव्याद, तथा अन्य (पिशाचा: ) सव मांस- भक्षक रोग-जीवाणु भी, (आत्मना) निजस्वरूप से, (प्रजया) तथा सन्तानों से (वियातयन्ताम् ) वियुक्त कर दिये जाएं और (अयम् ) यह रुग्ण (अगद:) रोगरहित (अस्तु) हो जाय। [क्रव्याद्=क्रव्य=हिंसा द्वारा प्राप्त कच्चा मांस +अद भक्षणे । कृवि हिंसायाम् (भ्वादि)। क्रव्याद् और पिशाच समानार्थक हैं। कच्चा मांस है शरीरस्थ मांस, जिसे कि रोग-जीवाणु रुग्ण करते हैं। राष्ट्राधिपति के सम्बन्ध में मन्त्रार्थ, पूर्ववत्।]

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