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  • यजुर्वेद - अध्याय 28/ मन्त्र 11
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - निचृच्छक्वरी स्वरः - धैवतः
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    होता॑ यक्ष॒दिन्द्र॒ स्वाहाज्य॑स्य॒ स्वाहा॒ मेद॑सः॒ स्वाहा॑ स्तो॒काना॒ स्वाहा॒ स्वाहा॑कृतीना॒ स्वाहा॑ ह॒व्यसू॑क्तीनाम्। स्वाहा॑ दे॒वाऽ आ॑ज्य॒पा जु॑षा॒णाऽ इन्द्र॒ऽ आज्य॑स्य॒ व्यन्तु॒ होत॒र्यज॑॥११॥

    स्वर सहित पद पाठ

    होता॑। य॒क्ष॒त्। इन्द्र॑म्। स्वाहा॑। आज्य॑स्य। स्वाहा॑। मेद॑सः। स्वाहा॑। स्तो॒काना॑म्। स्वाहा॑। स्वाहा॑कृतीना॒मिति॒ स्वाहा॑ऽकृतीनाम्। स्वाहा॑। ह॒व्यसू॑क्तीना॒मिति॑ ह॒व्यऽसू॑क्तीनाम्। स्वाहा॑। दे॒वाः। आ॒ज्य॒पा इत्या॑ज्य॒ऽपाः। जु॒षा॒णाः। इन्द्रः॑। आज्य॑स्य। व्यन्तु॑। होतः॑। यज॑ ॥११ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    होता यक्षदिन्द्रँ स्वाहाज्यस्य स्वाहा मेदसः स्वाहा स्तोकानाँ स्वाहा स्वाहाकृतीनाँ स्वाहा हव्यसूक्तीनाम् । स्वाहा देवाऽआज्यपा जुषाणाऽइन्द्रऽआज्यस्य व्यन्तु होतर्यज ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    होता। यक्षत्। इन्द्रम्। स्वाहा। आज्यस्य। स्वाहा। मेदसः। स्वाहा। स्तोकानाम्। स्वाहा। स्वाहाकृतीनामिति स्वाहाऽकृतीनाम्। स्वाहा। हव्यसूक्तीनामिति हव्यऽसूक्तीनाम्। स्वाहा। देवाः। आज्यपा इत्याज्यऽपाः। जुषाणाः। इन्द्रः। आज्यस्य। व्यन्तु। होतः। यज॥११॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 28; मन्त्र » 11
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    पदार्थ -
    हे (होतः) विद्यादाता पुरुष! जैसे (इन्द्रः) परम ऐश्वर्य का दाता (होता) विद्योन्नति को ग्रहण करने हारा जन (आज्यस्य) जानने योग्य शास्त्र की (स्वाहा) सत्य वाणी को (मेदसः) चिकने धातु की (स्वाहा) यथार्थ क्रिया को (स्तोकानाम्) छोटे बालकों की (स्वाहा) उत्तम प्रिय वाणी को (स्वाहाकृतीनाम्) सत्य वाणी तथा क्रिया के अनुष्ठानों की (स्वाहा) होमक्रिया को और (हव्यसूक्तीनाम्) बहुत ग्रहण करने योग्य शास्त्रों के सुन्दर वचनों से युक्त बुद्धियों की (स्वाहा) उत्तम क्रियायुक्त (इन्द्रम्) परम ऐश्वर्य को (यक्षत्) प्राप्त होता है, जैसे (स्वाहा) सत्यवाणी करके (आज्यस्य) स्निग्ध वचन को (जुषाणाः) प्रसन्न किये हुए (आज्यपाः) घी आदि को पीने वा उससे रक्षा करने वाले (देवाः) विद्वान् लोग ऐश्वर्य को (व्यन्तु) प्राप्त हों, वैसे (यज) यज्ञ कीजिये॥११॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो पुरुष शरीर, आत्मा, सन्तान, सत्कार और विद्या वृद्धि करना चाहते हैं, वे सब ओर से सुखयुक्त होते हैं॥११॥

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