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  • यजुर्वेद - अध्याय 28/ मन्त्र 4
    ऋषिः - बृहदुक्थो वामदेव ऋषिः देवता - रुद्रो देवता छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    6

    होता॑ यक्षद् ब॒र्हिषीन्द्रं॑ निषद्व॒रं वृ॑ष॒भं नर्या॑पसम्। वसु॑भी रु॒द्रैरा॑दि॒त्यैः स॒युग्भि॑र्ब॒र्हिरास॑दद् वेत्वाज्य॑स्य॒ होत॒र्यज॑॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    होता॑। य॒क्ष॒त्। ब॒र्हिषि॑। इन्द्र॑म्। नि॒ष॒द्व॒रम्। नि॒स॒द्व॒रमिति॑ निसत्ऽव॒रम्। वृ॒ष॒भम्। नर्या॑पस॒मिति॒ नर्य॑ऽअपसम्। वसु॑भि॒रिति॒ वसु॑ऽभिः। रु॒द्रैः। आ॒दि॒त्यैः। स॒युग्भि॒रिति॑ स॒युक्ऽभिः॑। ब॒र्हिः। आ। अ॒स॒द॒त्। वेतु॑। आज्य॑स्य। होतः॑। यज॑ ॥४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    होता यक्षद्बरिषीन्द्रन्निषद्वरँवृषभन्नर्यापसम् । वसुभी रुद्रैरादित्यैः सुयुग्भिर्बर्हिरासदद्वेत्वाज्यस्य होतर्यज ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    होता। यक्षत्। बर्हिषि। इन्द्रम्। निषद्वरम्। निसद्वरमिति निसत्ऽवरम्। वृषभम्। नर्यापसमिति नर्यऽअपसम्। वसुभिरिति वसुऽभिः। रुद्रैः। आदित्यैः। सयुग्भिरिति सयुक्ऽभिः। बर्हिः। आ। असदत्। वेतु। आज्यस्य। होतः। यज॥४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 28; मन्त्र » 4
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    पदार्थ -
    हे (होतः) उत्तम दान के दाता पुरुष! (होता) सुख चाहने वाला पुरुष जैसे (सयुग्भिः) एक साथ योग करने वाले (वसुभिः) प्रथम कक्षा के (रुद्रैः) मध्यम कक्षा के और (आदित्यैः) उत्तम कक्षा के विद्वानों के साथ (बर्हिषि) उत्तम विद्वानों की सभा में (निषद्वरम्) जिस के निकट श्रेष्ठ जन बैठें, उस (वृषभम्) सब से उत्तम बली (नर्यापसम्) मनुष्यों के उत्तम कामों का सेवन करने हारे (इन्द्रम्) नीति से शोभित राजा को (यक्षत्) प्राप्त होवे, (आज्यस्य) करने योग्य न्याय की (बर्हिः) उत्तम सभा में (आ, असदत्) स्थित होवे और (वेतु) सुख को प्राप्त होवे, वैसे (यज) प्राप्त हूजिये॥४॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे पृथिवी आदि लोक, प्राण आदि वायु तथा काल के अवयव महीने सब साथ वर्त्तमान हैं, वैसे जो राजा और प्रजा के जन आपस में अनुकूल वर्त्त के सभा से प्रजा का पालन करें, वे उत्तम प्रशंसा को पाते हैं॥४॥

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