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  • यजुर्वेद - अध्याय 7/ मन्त्र 48
    ऋषिः - आङ्गिरस ऋषिः देवता - आत्मा देवता छन्दः - आर्षी उष्णिक् स्वरः - ऋषभः
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    को॑ऽदा॒त् कस्मा॑ऽअदा॒त् कामो॑ऽदा॒त् कामा॑यादात्। कामो॑ दा॒ता कामः॑ प्रतिग्रही॒ता कामै॒तत्ते॑॥४८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कः। अ॒दा॒त्। कस्मै॑। अ॒दा॒त्। कामः॑। अ॒दा॒त्। कामा॑य। अ॒दा॒त्। कामः॑। दा॒ता। कामः॑। प्र॒ति॒ग्र॒ही॒तेति॑ प्रतिऽग्रही॒ता। काम॑। ए॑तत्। ते॒ ॥४८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    को दात्कस्मा ऽअदात्कामो दात्कामायादात् । कामो दाता कामः प्रतिग्रहीता कामैतत्ते ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    कः। अदात्। कस्मै। अदात्। कामः। अदात्। कामाय। अदात्। कामः। दाता। कामः। प्रतिग्रहीतेति प्रतिऽग्रहीता। काम। एतत्। ते॥४८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 7; मन्त्र » 48
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    पदार्थ -
    (कः) कौन कर्म्म-फल को (अदात्) देता और (कस्मै) किसके लिये (अदात्) देता है। इन दो प्रश्नों के उत्तर (कामः) जिसकी कामना सब करते हैं, वह परमेश्वर (अदात्) देता और (कामाय) कामना करने वाले जीव को (अदात्) देता है। अब विवेक करते हैं कि (कामः) जिसकी योगीजन कामना करते हैं, वह परमेश्वर (दाता) देने वाला है, (कामः) कामना करने वाला जीव (प्रतिग्रहीता) लेनेवाला है। हे (काम) कामना करने वाले जीव! (ते) तेरे लिये मैंने वेदों के द्वारा (एतत्) यह समस्त आज्ञा की है, ऐसा तू निश्चय करके जान॥४८॥

    भावार्थ - इस संसार में कर्म्म करने वाले जीव और फल देने वाला ईश्वर है। यहां यह जानना चाहिये कि कामना के विना कोई आंख का पलक भी नहीं हिला सकता। इस कारण जीव कामना करे, परन्तु धर्म्म सम्बन्धी कामना करे, अधर्म्म की नहीं। यह निश्चय कर जानना चाहिये कि जो इस विषय में मनुजी ने कहा है, वह वेदानुकूल है, जैसे- ‘इस संसार में अति कामना प्रशंसनीय नहीं और कामना के विना कोई कार्य्य सिद्ध नहीं हो सकता, इसलिये धर्म्म की कामना करनी और अधर्म्म की नहीं, क्योंकि वेदों का पढ़ना-पढ़ाना और वेदोक्त धर्म का आचरण करना आदि कामना इच्छा के विना कभी सिद्ध नहीं हो सकती॥१॥ इस संसार में तीनों काल में इच्छा के विना कोई क्रिया नहीं देख पड़ती, जो-जो कुछ किया जाता है, सो-सो सब इच्छा ही का व्यापार है, इसलिये श्रेष्ठ वेदोक्त कामों की इच्छी करनी, इतर दुष्ट कामों की नहीं॥४८॥

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