Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 18/ मन्त्र 30
    ऋषिः - देवा ऋषयः देवता - राज्यावानात्मा देवता छन्दः - स्वराड् जगती स्वरः - निषादः
    4

    वाज॑स्य॒ नु प्र॑स॒वे मा॒तरं॑ म॒हीमदि॑तिं॒ नाम॒ वच॑सा करामहे। यस्या॑मि॒दं विश्वं॒ भुव॑नमावि॒वेश॒ तस्यां॑ नो दे॒वः स॑वि॒ता धर्म॑ साविषत्॥३०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वाज॑स्य। नु। प्र॒स॒वे इति॑ प्रऽस॒वे। मा॒तर॑म्। म॒हीम्। अदि॑तिम्। नाम॑। वच॑सा। का॒रा॒म॒हे॒। यस्या॑म्। इ॒दम्। विश्व॑म्। भुव॑नम्। आ॒वि॒वेशेत्याऽवि॒वेश॑। तस्या॑म्। नः॒। दे॒वः। स॒वि॒ता। धर्म॑। सा॒वि॒ष॒त् ॥३० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वाजस्य नु प्रसवे मातरँम्महीमदितिन्नाम वचसा करामहे । यस्यामिदँविश्वम्भुवनमाविवेश तस्यान्नो देवः सविता धर्म साविषत् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वाजस्य। नु। प्रसवे इति प्रऽसवे। मातरम्। महीम्। अदितिम्। नाम। वचसा। कारामहे। यस्याम्। इदम्। विश्वम्। भुवनम्। आविवेशेत्याऽविवेश। तस्याम्। नः। देवः। सविता। धर्म। साविषत्॥३०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 18; मन्त्र » 30
    Acknowledgment

    Meaning -
    We, engaged in producing nice grain, sing the praises of adorable, immortal Mother the Earth, which envelops all these visible material worlds. May the Holy God, the Embodiment of glory, create on this Earth, in us, a desire for doing noble deeds.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top