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  • यजुर्वेद - अध्याय 18/ मन्त्र 31
    ऋषिः - देवा ऋषयः देवता - विश्वेदेवा देवताः छन्दः - निचृदार्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    विश्वे॑ऽअ॒द्य म॒रुतो॒ विश्व॑ऽऊ॒ती विश्वे॑ भवन्त्व॒ग्नयः॒ समि॑द्धाः। विश्वे॑ नो दे॒वाऽअव॒साग॑मन्तु॒ विश्व॑मस्तु॒ द्रवि॑णं॒ वाजो॑ऽअ॒स्मे॥३१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विश्वे॑। अ॒द्य। म॒रुतः॑। विश्वे॑। ऊ॒ती। विश्वे॑। भ॒व॒न्तु॒। अ॒ग्नयः॑। समि॑द्धा॒ इति॒ सम्ऽइ॑द्धाः। विश्वे॑। नः॒। दे॒वाः। अ॒व॒सा। आ। ग॒म॒न्तु॒। विश्व॑म्। अ॒स्तु॒। द्रवि॑णम्। वाजः॑। अ॒स्मेऽइत्य॒स्मे ॥३१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वेऽअद्य मरुतो विश्वऽऊती विश्वे भवन्त्वग्नयः समिद्धाः । विश्वे नो देवाऽअवसागमन्तु विश्वमस्तु द्रविणँवाजोऽअस्मे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वे। अद्य। मरुतः। विश्वे। ऊती। विश्वे। भवन्तु। अग्नयः। समिद्धा इति सम्ऽइद्धाः। विश्वे। नः। देवाः। अवसा। आ। गमन्तु। विश्वम्। अस्तु। द्रविणम्। वाजः। अस्मेऽइत्यस्मे॥३१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 18; मन्त्र » 31
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    Meaning -
    Let all airs, all persons, like all thoroughly kindled fires be ready today for our protection. May all the learned persons come hither for protection. May we possess all riches and food.

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