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  • यजुर्वेद - अध्याय 18/ मन्त्र 25
    ऋषिः - पूर्वदेवा ऋषयः देवता - समाङ्कगणितविद्याविदात्मा देवता छन्दः - भुरिक् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
    7

    चत॑स्रश्च मे॒ऽष्टौ च॑ मे॒ऽष्टौ च॑ मे॒ द्वाद॑श च मे॒ द्वाद॑श च मे॒ षोड॑श च मे॒ षोड॑श च मे विꣳश॒तिश्च॑ मे विꣳश॒तिश्च॑ मे॒ चतु॑र्विꣳशतिश्च मे॒ चतु॑र्विꣳशतिश्च मे॒ऽष्टावि॑ꣳशतिश्च मे॒ऽष्टावि॑ꣳशतिश्च मे॒ द्वात्रि॑ꣳशच्च मे॒ द्वात्रि॑ꣳशच्च मे॒ षट्त्रि॑ꣳशच्च मे॒ षट्त्रि॑ꣳशच्च मे चत्वारि॒ꣳशच्च॑ मे चत्वारि॒ꣳशच्च मे॒ चतु॑श्चत्वारिꣳशच्च मे॒ चतु॑श्चत्वारिꣳशच्च मेऽष्टाच॑त्वारिꣳशच्च मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम्॥२५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    चत॑स्रः। च॒। मे॒। अ॒ष्टौ। च॒। मे॒। अ॒ष्टौ। च॒। मे॒। द्वाद॑श। च॒। मे॒। द्वाद॑श। च॒। मे॒। षोड॑श। च॒। मे॒। षोड॑श। च॒। मे॒। वि॒ꣳश॒तिः। च॒। मे॒। वि॒ꣳश॒तिः। च॒। मे॒। चतु॑र्विꣳशति॒रिति॒ चतुः॑ऽविꣳशतिः। च॒। मे॒। चतु॑र्विꣳशति॒रिति॒ चतुः॑ऽविꣳशतिः। च॒। मे॒। अ॒ष्टावि॑ꣳशति॒रित्य॒ष्टाऽविꣳशतिः। च॒। मे॒। अ॒ष्टावि॑ꣳशति॒रित्य॒ष्टाऽवि॑ꣳशतिः। च॒। मे॒। द्वात्रि॑ꣳशत्। च॒। मे॒। द्वात्रि॑ꣳशत्। च॒। मे॒। षट्त्रि॑ꣳश॒दिति॒ षट्ऽत्रि॑ꣳशत्। च॒। मे॒। षट्त्रि॑ꣳश॒दिति॒ षट्ऽत्रि॑ꣳशत्। च॒। मे॒। च॒त्वा॒रि॒ꣳशत्। च॒। मे॒। च॒त्वा॒रि॒ꣳशत्। च॒। मे॒। चतु॑श्चत्वारिꣳश॒दिति॒ चतुः॑ऽचत्वारिꣳशत्। च॒। मे॒। चतु॑श्चत्वारिꣳश॒दिति॒ चतुः॑ऽचत्वारिꣳशत्। च॒। मे॒। अ॒ष्टाच॑त्वारिꣳश॒दित्य॒ष्टाऽच॑त्वारिꣳशत्। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥२५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    चतस्रश्च मे ष्टौ च मे ष्टौ च मे द्वादश च मे द्वादश च मे षोडश च मे षोडश च मे विँशतिश्च मे विँशतिश्च मे चतुर्विँशतिश्च मे चतुर्विँशतिश्च मे ष्टाविँशतिश्च मे ष्टाविँशच्च मे द्वात्रिँशच्च मे द्वात्रिँशच्च मे षट्त्रिँशच्च मे षट्त्रिँशच्च मे चत्वारिँशच्च मे चत्वारिँशच्च मे चतुश्चत्वारिँशच्च मे चतुश्चत्वारिँशच्च मे ष्टाचत्वारिँशच्च मे ष्टाचत्वारिँशच्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    चतस्रः। च। मे। अष्टौ। च। मे। अष्टौ। च। मे। द्वादश। च। मे। द्वादश। च। मे। षोडश। च। मे। षोडश। च। मे। विꣳशतिः। च। मे। विꣳशतिः। च। मे। चतुर्विꣳशतिरिति चतुःऽविꣳशतिः। च। मे। चतुर्विꣳशतिरिति चतुःऽविꣳशतिः। च। मे। अष्टाविꣳशतिरित्यष्टाऽविꣳशतिः। च। मे। अष्टाविꣳशतिरित्यष्टाऽविꣳशतिः। च। मे। द्वात्रिꣳशत्। च। मे। द्वात्रिꣳशत्। च। मे। षट्त्रिꣳशदिति षट्ऽत्रिꣳशत्। च। मे। षट्त्रिꣳशदिति षट्ऽत्रिꣳशत्। च। मे। चत्वारिꣳशत्। च। मे। चत्वारिꣳशत्। च। मे। चतुश्चत्वारिꣳशदिति चतुःऽचत्वारिꣳशत्। च। मे। चतुश्चत्वारिꣳशदिति चतुःऽचत्वारिꣳशत्। च। मे। अष्टाचत्वारिꣳशदित्यष्टाऽचत्वारिꣳशत्। च। मे। यज्ञेन। कल्पन्ताम्॥२५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 18; मन्त्र » 25
    Acknowledgment

    Meaning -
    May my Four and my Eight, and my Eight and my Twelve, and my Twelve and my Sixteen, and my Sixteen and my Twenty, and my Twenty and my Twenty Four, and my Twenty Four and my Twenty Eight, and my Twenty Eight and my Thirty Two, and my Thirty Two and my Thirty Six, and my Thirty Six and my Forty, and my Forty and my Forty Four, and my Forty Four and my Forty Eight etc. increase or decrease by addition and subtraction.

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