Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 1/ मन्त्र 2
    सूक्त - प्रत्यङ्गिरसः देवता - कृत्यादूषणम् छन्दः - विराड्गायत्री सूक्तम् - कृत्यादूषण सूक्त

    शी॑र्ष॒ण्वती॑ न॒स्वती॑ क॒र्णिनी॑ कृत्या॒कृता॒ संभृ॑ता वि॒श्वरू॑पा। सारादे॒त्वप॑ नुदाम एनाम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शी॒र्ष॒ण्ऽवती॑ । न॒स्वती॑ । क॒र्णिनी॑ । कृ॒त्या॒ऽकृता॑ । सम्ऽभृ॑ता । वि॒श्वऽरू॑पा । सा । आ॒रात् । ए॒तु॒ । अप॑ । नु॒दा॒म॒: । ए॒ना॒म् ॥१.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शीर्षण्वती नस्वती कर्णिनी कृत्याकृता संभृता विश्वरूपा। सारादेत्वप नुदाम एनाम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शीर्षण्ऽवती । नस्वती । कर्णिनी । कृत्याऽकृता । सम्ऽभृता । विश्वऽरूपा । सा । आरात् । एतु । अप । नुदाम: । एनाम् ॥१.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 1; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    (शीर्षण्वती) शिरसम्बन्धी, (नस्वती) नाकसम्बन्धी, (कर्णिनी) कानसम्बन्धी [जो हिंसा क्रिया] (कृत्याकृता) हिंसा करनेवाले पुरुष द्वारा (संभृता) साधी गई (विश्वरूपा) अनेक रूपवाली है, (सा) वह (आरात्) दूर (एतु) चली जावे, (एनाम्) इसको (अप नुदामः) हम हटाते हैं ॥२॥

    भावार्थ - प्रजा के शरीरों को कष्ट देनेवाले उत्पातियों को यथावत् दण्ड दिया जावे ॥२॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top