Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 28

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 28/ मन्त्र 13
    सूक्त - अथर्वा देवता - अग्न्यादयः छन्दः - पुरउष्णिक् सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त

    ऋ॒तुभि॑ष्ट्वार्त॒वैरायु॑षे॒ वर्च॑से त्वा। सं॑वत्स॒रस्य॒ तेज॑सा॒ तेन॒ संह॑नु कृण्मसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऋ॒तुऽभि॑: । त्वा॒ । आ॒र्त॒वै: । आयु॑षे । वर्च॑से । त्वा॒। स॒म्ऽव॒त्स॒रस्य॑। तेज॑सा । तेन॑ । सम्ऽह॑नु । कृ॒ण्म॒सि॒ ॥२८.१३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऋतुभिष्ट्वार्तवैरायुषे वर्चसे त्वा। संवत्सरस्य तेजसा तेन संहनु कृण्मसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ऋतुऽभि: । त्वा । आर्तवै: । आयुषे । वर्चसे । त्वा। सम्ऽवत्सरस्य। तेजसा । तेन । सम्ऽहनु । कृण्मसि ॥२८.१३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 28; मन्त्र » 13

    पदार्थ -
    (ऋतुभिः) ऋतुओं से (त्वा) तुझ परमेश्वर को, (आर्तवैः) ऋतुओं के विभागों से (त्वा) तुझ को और (संवत्सरस्य) सब के निवास देनेवाले सूर्य के (तेन) उस (तेजसा) तेज से (आयुषे) अपने जीवन के लिये और (वर्चसे) तेज के लिये (संहनु) संयुक्त (कृण्मसि) हम करते हैं ॥१३॥

    भावार्थ - विद्वान् लोग ऋतु, मास आदि काल और सूर्य आदि रचनाओं के विचार से परमेश्वर की महिमा साक्षात् करते हैं ॥१३॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top