Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 28

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 28/ मन्त्र 7
    सूक्त - अथर्वा देवता - अग्न्यादयः छन्दः - पञ्चपदातिशक्वरी सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त

    त्र्या॑यु॒षं ज॒मद॑ग्नेः क॒श्यप॑स्य त्र्यायु॒षम्। त्रे॒धामृत॑स्य॒ चक्ष॑णं॒ त्रीण्यायूं॑षि तेऽकरम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्रि॒ऽआ॒यु॒षम् । ज॒मत्ऽअ॑ग्ने: । क॒श्यप॑स्य । त्रि॒ऽआ॒यु॒षम् । त्रे॒धा । अ॒मृत॑स्य । चक्ष॑णम् । त्रिणि॑ । आयूं॑षि । ते॒ । अ॒क॒र॒म् ॥२८.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्र्यायुषं जमदग्नेः कश्यपस्य त्र्यायुषम्। त्रेधामृतस्य चक्षणं त्रीण्यायूंषि तेऽकरम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्रिऽआयुषम् । जमत्ऽअग्ने: । कश्यपस्य । त्रिऽआयुषम् । त्रेधा । अमृतस्य । चक्षणम् । त्रिणि । आयूंषि । ते । अकरम् ॥२८.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 28; मन्त्र » 7

    पदार्थ -
    (जमदग्नेः) प्रज्वलित अग्नि के समान तेजस्वी पुरुष के [अथवा, नेत्र अर्थात् नेत्र आदि इन्द्रियों के] (त्र्यायुषम्) तीन जीवनसाधन म० १। [अथवा, शुद्धि, बल और पराक्रमयुक्त तीन गुण आयु], और (कश्यपस्य) तत्त्वदर्शी ऋषि के [अथवा, ईश्वर की व्यवस्था से सिद्ध] (त्र्यायुषम्) बालकपन, यौवन और बुढ़ापा, तीन प्रकार की आयु [अथवा, ब्रह्मचर्य, गृहस्थ और वानप्रस्थ आश्रमों का सुखकारक तीन गुण आयु], (त्रेधा) तीन प्रकार से [अर्थात् विद्या, शिक्षा और परोपकार सहित तीन गुण आयु से] (अमृतस्य) अमरपन वा मोक्ष का (चक्षणम्) दर्शक होवे। [हे पुरुषार्थी ! वे ही] (त्रीणि) तीन (आयूंषि) जीवनसाधन (ते) तेरे लिये (अकरम्) मैंने किये हैं ॥७॥

    भावार्थ - प्रतापी, दूरदर्शी मनुष्य तीन जीवनसाधन अर्थात् पुरुषार्थ, प्रबन्ध और कर्म को [म० १], तथा शारीरिक और आत्मिक बल से तीन पदार्थ अर्थात् अन्न, पुरुष, और गौ आदि पशुओं को [म० ३] प्राप्त करके परोपकार करते हुए सदा सुखी रहें ॥७॥ यह मन्त्र कुछ भेद से यजुर्वेद में है−अ० ३ म० ६२। कोष्ठ के भीतर महर्षि दयानन्द भाष्य का अर्थ है, उनका मत है−उस मन्त्र में [त्र्यायुषम्] चार बार होने से यह तात्पर्य है कि विद्वान् पुरुष तिगुणी अर्थात् तीन सौ वर्ष से अधिक चार सौ वर्ष पर्यन्त भी आयु भोग सकता है ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top