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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 28

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 28/ मन्त्र 3
    सूक्त - अथर्वा देवता - अग्न्यादयः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त

    त्रयः॒ पोष॑स्त्रि॒वृति॑ श्रयन्ताम॒नक्तु॑ पू॒षा पय॑सा घृ॒तेन॑। अन्न॑स्य भू॒मा पुरु॑षस्य भू॒मा भू॒मा प॑शू॒नां त॑ इ॒ह श्र॑यन्ताम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्रय॑:। पोषा॑: । त्रि॒ऽवृति॑। श्र॒य॒न्ता॒म् । अ॒नक्तु॑ । पू॒षा । पय॑सा । घृ॒तेन॑ । अन्न॑स्‍य । भू॒मा । पुरु॑षस्य । भू॒मा । भू॒मा । प॒शू॒नाम् । ते । इ॒ह । श्र॒य॒न्ता॒म् ॥२८.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्रयः पोषस्त्रिवृति श्रयन्तामनक्तु पूषा पयसा घृतेन। अन्नस्य भूमा पुरुषस्य भूमा भूमा पशूनां त इह श्रयन्ताम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्रय:। पोषा: । त्रिऽवृति। श्रयन्ताम् । अनक्तु । पूषा । पयसा । घृतेन । अन्नस्‍य । भूमा । पुरुषस्य । भूमा । भूमा । पशूनाम् । ते । इह । श्रयन्ताम् ॥२८.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 28; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (त्रयः) तीन (पोषाः) पोषणसामर्थ्य (त्रिवृति) त्रिवृति [तीन जीवनसाधन−म० १] में (श्रयन्ताम्) बनी रहें। (पूषा) पोषण करनेवाला अधिकारी (पयसा) दूध और (घृतेन) घृत से (अनक्तु) संयुक्त करे। (अन्नस्य) अन्न की (भूमा) बहुतायत, (पुरुषस्य) पुरुषों की (भूमा) बहुतायत और (पशूनाम्) पशुओं की (भूमा) बहुतायत (ते) यह सब (इह) यहाँ पर (श्रयन्ताम्) ठहरी रहें ॥३॥

    भावार्थ - सब मनुष्य उत्तम पुरुषार्थ, उत्तम प्रबन्ध और उत्तम कर्म से [म० १] अन्न, पुरुषों और पशुओं का योग्य संग्रह करके सुख भोगें ॥३॥

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