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अथर्ववेद > काण्ड 9 > सूक्त 6 > पर्यायः 1

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  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 6/ मन्त्र 13
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अतिथिः, विद्या छन्दः - साम्नी निचृत्पङ्क्तिः सूक्तम् - अतिथि सत्कार

    यद॑शन॒कृतं॒ ह्वय॑न्ति हवि॒ष्कृत॑मे॒व तद्ध्व॑यन्ति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । अ॒श॒न॒ऽकृत॑म् । ह्वय॑न्ति । ह॒वि॒:ऽकृत॑म् । ए॒व । तत् । ह्व॒य॒न्ति॒ ॥६.१३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदशनकृतं ह्वयन्ति हविष्कृतमेव तद्ध्वयन्ति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । अशनऽकृतम् । ह्वयन्ति । हवि:ऽकृतम् । एव । तत् । ह्वयन्ति ॥६.१३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 6; पर्यायः » 1; मन्त्र » 13

    पदार्थ -
    (यत्) जब वे [गृहस्थ लोग] (अशनकृतम्) भोजन बनानेवाले को (ह्वयन्ति) बुलाते हैं, (तत्) तब वे [संन्यासी लोग] (हविष्कृतम्) देने और लेने योग्य व्यवहार करनेहारे [परमेश्वर] को (एव) ही (ह्वयन्ति) बुलाते हैं ॥१३॥

    भावार्थ - संन्यासी लोग गृहस्थों के समान सूपकार आदि की अपेक्षा न करके ईश्वर का ध्यान करते हुए आत्मावलम्बी होते हैं ॥१३॥

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