अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 6/ मन्त्र 15
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - अतिथिः, विद्या
छन्दः - साम्न्यनुष्टुप्
सूक्तम् - अतिथि सत्कार
यान्यु॑लूखलमुस॒लानि॒ ग्रावा॑ण ए॒व ते ॥
स्वर सहित पद पाठयानि॑ । उ॒लू॒ख॒ल॒ऽमु॒स॒लानि॑ । ग्रावा॑ण: । ए॒व । ते ॥६.१५॥
स्वर रहित मन्त्र
यान्युलूखलमुसलानि ग्रावाण एव ते ॥
स्वर रहित पद पाठयानि । उलूखलऽमुसलानि । ग्रावाण: । एव । ते ॥६.१५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 6;
पर्यायः » 1;
मन्त्र » 15
विषय - संन्यासी और गृहस्थ के धर्म का उपदेश।
पदार्थ -
(यानि) जो [गृहस्थों के] (उलूखलमुसलानि) ओखली-मूसल हैं, (ते) वे [वैसे] (एव) ही [संन्यासियों के] (ग्रावाणः) शास्त्र उपदेश हैं ॥१५॥
भावार्थ - जिस प्रकार गृहस्थ लोग ओखली-मूसल से कूटकर अन्न का सार निकालते हैं, उसी प्रकार संन्यासी लोग तपश्चरण करके सत्यशास्त्रों का उपदेश करते हैं ॥१५॥
टिप्पणी -
१५−(यानि) (उलूखलमुसलानि) उरु+खल चलने-अच्। उरु विस्तीर्णं खलं धान्यमर्दनस्थानं यस्य तद् उलूखलं पृषोदरादिरूपम्। उलूखलमुरुकरं वोर्क्करं वोर्ध्वखं वा-निरु० ९।२०। वृषादिभ्यश्चित्। उ० १।१०६। मुस खण्डने-कल, चित्। मुसलं मुहुः सरम्=निरु० ९।३५। धान्यादिकण्डनसाधनानि (ग्रावाणः) अ० ३।१०।५। गॄ विज्ञापे शब्दे च-क्वनिप्। शास्त्रोपदेशाः (एव) (ते) ॥