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अथर्ववेद के काण्ड - 9 के सूक्त 6 के मन्त्र
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अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 15
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - अतिथिः, विद्या
छन्दः - साम्न्यनुष्टुप्
सूक्तम् - अतिथि सत्कार
57
यान्यु॑लूखलमुस॒लानि॒ ग्रावा॑ण ए॒व ते ॥
स्वर सहित पद पाठयानि॑ । उ॒लू॒ख॒ल॒ऽमु॒स॒लानि॑ । ग्रावा॑ण: । ए॒व । ते ॥६.१५॥
स्वर रहित मन्त्र
यान्युलूखलमुसलानि ग्रावाण एव ते ॥
स्वर रहित पद पाठयानि । उलूखलऽमुसलानि । ग्रावाण: । एव । ते ॥६.१५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
संन्यासी और गृहस्थ के धर्म का उपदेश।
पदार्थ
(यानि) जो [गृहस्थों के] (उलूखलमुसलानि) ओखली-मूसल हैं, (ते) वे [वैसे] (एव) ही [संन्यासियों के] (ग्रावाणः) शास्त्र उपदेश हैं ॥१५॥
भावार्थ
जिस प्रकार गृहस्थ लोग ओखली-मूसल से कूटकर अन्न का सार निकालते हैं, उसी प्रकार संन्यासी लोग तपश्चरण करके सत्यशास्त्रों का उपदेश करते हैं ॥१५॥
टिप्पणी
१५−(यानि) (उलूखलमुसलानि) उरु+खल चलने-अच्। उरु विस्तीर्णं खलं धान्यमर्दनस्थानं यस्य तद् उलूखलं पृषोदरादिरूपम्। उलूखलमुरुकरं वोर्क्करं वोर्ध्वखं वा-निरु० ९।२०। वृषादिभ्यश्चित्। उ० १।१०६। मुस खण्डने-कल, चित्। मुसलं मुहुः सरम्=निरु० ९।३५। धान्यादिकण्डनसाधनानि (ग्रावाणः) अ० ३।१०।५। गॄ विज्ञापे शब्दे च-क्वनिप्। शास्त्रोपदेशाः (एव) (ते) ॥
विषय
अतिथियज्ञ की वस्तुएँ देवयज्ञ की वस्तुएँ
पदार्थ
१. (ये) = जो (व्रहयः यवा:) = अतिथियज्ञ के अवसर पर चावल व जौ (निरुप्यन्ते) = बिखेरे जाते हैं. (अंशवः एव ते) = वे यज्ञ में सोमलता के खण्डों के समान हैं। २. (यानि) = जो भोजन की तैयारी के लिए (उलूखलमुसलानि) = ऊखल व मूसल है, (ग्रावाणः एव ते) = वे यज्ञ में सोम कूटने के लिए उपयोगी पत्थरों के समान हैं। ३. (शूर्पम्) = अतिथि के अनशोधन के लिए काम में लाया जानेवाला छाज (पवित्रम्) = सोम के छानने के लिए 'दशापवित्र' नामक वस्त्रखण्ड के समान जानना चाहिए, (तुषा:) = छाज से फटकने पर अलग हो जानेवाले अन्न के तुष (ऋजीषा) = सोम को छानने के बाद प्राप्त फोक के समान हैं। (अभिषवणी:) = अतिथि का भोजन बनाने के लिए प्रयुक्त होनेवाले (आप:) = जल यज्ञ में सोमरस में मिलाने योग्य 'वसनीवरी' नामक जलधाराओं के समान हैं। ४. स्(त्रुक दर्वि:) = अतिथि का भोजन बनाने के लिए जो कड़छी है, वह यज्ञ के घृत-चमस के समान है, (आयवनम्) = भोजन तैयार करते समय जो दाल आदि के चलाने का कार्य किया जाता है, वह (नेक्षणम्) = यज्ञ में बार-बार सोमरस को मिलाने के समान है। (कुम्भ्यः) = खाना पकाने के लिए जो देगची आदि पात्र हैं, वे (द्रोणकलशा:) = सोमरस रखने के लिए द्रोणकलशों के समान हैं। (पात्राणि) = अतिथि को खिलाने के लिए जो कटोरी, थाली आदि पात्र हैं, वे यज्ञ में सोमपान करने के निमित्त (वायव्यानि) = वायव्य पात्रों के समान हैं और अतिथि के लिए (इयम् एव) = जो उठने-बैठने के लिए भूमि है, वही (कृष्णाजिनम्) = यज्ञ की कृष्ण मृगछाला के समान है।
भावार्थ
अतिथियज्ञ में प्रयुक्त होनेवाली वस्तुएँ देवयज्ञ में प्रयुक्त होनेवाली उस-उस वस्तु के समान हैं।
भाषार्थ
(यानि) जो (उलूखलमुसलानि) ओखली और मुसल हैं (ते) वे (ग्रावाणः एव) सिल-वट्टा ही हैं।
टिप्पणी
[उलूखल और मुसल ब्रीहि (धान) को कूट कर तण्डुल तय्यार करने के लिये होते हैं, और सिल-वट्टा पीठी पीसने तथा सोम ओषधि पीस कर सोमरस निकालने के लिये होते हैं]
विषय
अतिथि-यज्ञ और देवयज्ञ की तुलना।
भावार्थ
(ये) जो अतिथि यज्ञ के अवसर पर (ब्रीहयः यवाः) धान और जौ (निरुपयन्ते) प्राप्त किये जाते हैं (अंशव एव ते) वे यज्ञ में सोमलता के खण्डों के समान हैं। और (यानि) जो अतिथि के भोजनादि तैयार करने के लिये (उलूखल-मुसलानि) ओखली और मूसल धान कूटने के लिये काम में लाये जाते हैं (ग्रावाणः एव ते) वे यज्ञ में सोम कूटने के उपयोगी पत्थरों के समान हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
‘सो विद्यात्’ इति षट् पर्यायाः। एकं सुक्तम्। ब्रह्मा ऋषिः। अतिथिरुत विद्या देवता। तत्र प्रथमे पर्याये १ नागी नाम त्रिपाद् गायत्री, २ त्रिपदा आर्षी गायत्री, ३,७ साम्न्यौ त्रिष्टुभौ, ४ आसुरीगायत्री, ६ त्रिपदा साम्नां जगती, ८ याजुषी त्रिष्टुप्, १० साम्नां भुरिग बृहती, ११, १४-१६ साम्न्योऽनुष्टुभः, १२ विराड् गायत्री, १३ साम्नी निचृत् पंक्तिः, १७ त्रिपदा विराड् भुरिक् गायत्री। सप्तदशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Atithi Yajna: Hospitality
Meaning
Things like mortar and pestle used in the preparation of food for the guest are like the soma stones in the preparation of soma juice for yajna.
Translation
The mortar (ulukhala) and pestles (musala), that are there, are as if, the stones (gravana) used for pressing out cure- juice (abhigavant - apah).-
Translation
The pestle and mortar are the stones of pressing and crushing the Soma-plant.
Translation
Just as the pestle and mortar are for the householders to prepare food for the learned guests, so are religious sermons for the hermits.
Footnote
Learned guests: Atithis just as the householders by grinding eatables with pestle and mortar prepare food, so do the hermits through penance preach religious sermons.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१५−(यानि) (उलूखलमुसलानि) उरु+खल चलने-अच्। उरु विस्तीर्णं खलं धान्यमर्दनस्थानं यस्य तद् उलूखलं पृषोदरादिरूपम्। उलूखलमुरुकरं वोर्क्करं वोर्ध्वखं वा-निरु० ९।२०। वृषादिभ्यश्चित्। उ० १।१०६। मुस खण्डने-कल, चित्। मुसलं मुहुः सरम्=निरु० ९।३५। धान्यादिकण्डनसाधनानि (ग्रावाणः) अ० ३।१०।५। गॄ विज्ञापे शब्दे च-क्वनिप्। शास्त्रोपदेशाः (एव) (ते) ॥
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