Sidebar
अथर्ववेद के काण्ड - 9 के सूक्त 6 के मन्त्र
1 - 1
1 - 2
1 - 3
1 - 4
1 - 5
1 - 6
1 - 7
1 - 8
1 - 9
1 - 10
1 - 11
1 - 12
1 - 13
1 - 14
1 - 15
1 - 16
1 - 17
2 - 1
2 - 2
2 - 3
2 - 4
2 - 5
2 - 6
2 - 7
2 - 8
2 - 9
2 - 10
2 - 11
2 - 12
2 - 13
3 - 1
3 - 2
3 - 3
3 - 4
3 - 5
3 - 6
3 - 7
3 - 8
3 - 9
4 - 1
4 - 2
4 - 3
4 - 4
4 - 5
4 - 6
4 - 7
4 - 8
4 - 9
4 - 10
5 - 1
5 - 2
5 - 3
5 - 4
5 - 5
5 - 6
5 - 7
5 - 8
5 - 9
5 - 10
6 - 1
6 - 2
6 - 3
6 - 4
6 - 5
6 - 6
6 - 7
6 - 8
6 - 9
6 - 10
6 - 11
6 - 12
6 - 13
6 - 14
मन्त्र चुनें
अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 3
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - अतिथिः, विद्या
छन्दः - साम्नी त्रिष्टुप्
सूक्तम् - अतिथि सत्कार
80
यद्वा अति॑थिपति॒रति॑थीन्प्रति॒पश्य॑ति देव॒यज॑नं॒ प्रेक्ष॑ते ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । वै । अति॑थिऽपति: । अति॑थीन् । प्र॒ति॒ऽपश्य॑ति । दे॒व॒ऽयजन॑म् । प्र । ई॒क्ष॒ते॒ ॥६.३॥
स्वर रहित मन्त्र
यद्वा अतिथिपतिरतिथीन्प्रतिपश्यति देवयजनं प्रेक्षते ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । वै । अतिथिऽपति: । अतिथीन् । प्रतिऽपश्यति । देवऽयजनम् । प्र । ईक्षते ॥६.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
संन्यासी और गृहस्थ के धर्म का उपदेश।
पदार्थ
(यत् वै) जब ही (अतिथिपतिः) अतिथियों का पालन करनेहारा (अतिथीन्) अतिथियों [नित्य मिलने योग्य विद्वानों] को (प्रति-पश्यति) प्रतीक्षा से देखता है, वह (देवयजनम्) उत्तम गुणों का संगतिकरण (प्र ईक्षते) अच्छे प्रकार देखता है ॥३॥
भावार्थ
गृहस्थ लोग प्रीति से महामान्य विद्वानों का सत्कार करके उत्तम गुण प्राप्त करते हैं ॥३॥
टिप्पणी
३−(यत्) यदा (वै) निश्चयेन (अतिथिपतिः) अतिथीनां पालकः (अतिथीन्) अ० ७।२१।१। अत सातत्यगमने−इथिन्। नित्यप्रापणीयान् महामान्यान्। विदुषः पुरुषान् (प्रतिपश्यति) प्रतीक्षया पश्यति (देवयजनम्) उत्तमगुणानां संगतिकरणम् (प्र) प्रकर्षेण (ईक्षते) अवलोकयति ॥
विषय
अतिथियज्ञ-देवजन
पदार्थ
१. (यत्) = जब (अतिथिपति:) = अतिथियों का पालक गृहपति [गृहस्थ Host] (अतिथीन् प्रतिपश्यति) = अतिथियों की ओर देखता है, तब वह (वै देवयजनं प्रेक्षते) = निश्चय से देवयजन । को देखता है। वह यही सोचता है कि यह अतिथियज्ञ ही मेरा देवयज्ञ है। इसके द्वारा मैं अपने साथ देवों का [दिव्य गुणों का] यजन करूँगा-दिव्य गुणों को धारण करनेवाला बनूंगा। २. (यत् अभिवदति) = जब अतिथि का अभिवादन करता है तब वह (दीक्षाम् उपैति) = यज्ञ में दीक्षा [व्रत-ग्रहण] को प्राप्त करता है। (यत्) = जब (उदकं याचति) = जल-पात्रों में जल के द्वारा 'अर्ष, पाध, आचमनीय' आदि लेने के लिए कहता है तब वह (अपः प्रणयति) = मानो देवयज्ञ में जलों को प्रणीता-पात्र में लाता है। ३. (याः एव यज्ञे आपः प्रणीयन्ते) = जो भी जल यज्ञ में प्रणीता पात्र में लाये जाते हैं, (ताः एव ता:) = वे ही ये जल हैं जो अतिथियज्ञ में 'अर्घ, पाद्य, आचमनीय' के रूप में प्रयुक्त हो रहे हैं।
भावार्थ
भावार्थ-अतिथि सत्कार 'देवयज्ञ' ही है। यह अपने जीवन में दिव्य गुणों को धारण करने का उत्तम साधन है।
भाषार्थ
(यद्) जो (अतिथिपतिः) अतिथियों की रक्षा करने वाला गृहस्थी (अतिथीन्) अतिथियों को (प्रति पश्यति) मानपूर्वक देखता हैं वह (वै) वस्तुतः (देवयजनम्) देवों के प्रति जहां आहुतियां दी जाती हैं उस यज्ञ शाला को (प्रेक्षते) देखता है।
टिप्पणी
[प्रति पश्यति = आगत अतिथियों में से प्रत्येक को मानपूर्वक देखना]
विषय
अतिथि-यज्ञ और देवयज्ञ की तुलना।
भावार्थ
(यद् वा) और जब (अतिथिपतिः) अतिथियों का पालक, गृहपति (अतिथीन्) अतिथियों की (प्रतिपश्यति) प्रतीक्षा करता है तब वह (देवयजन प्रेक्षते) एक प्रकार से देवयज्ञ करने का ही संकल्प करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
‘सो विद्यात्’ इति षट् पर्यायाः। एकं सुक्तम्। ब्रह्मा ऋषिः। अतिथिरुत विद्या देवता। तत्र प्रथमे पर्याये १ नागी नाम त्रिपाद् गायत्री, २ त्रिपदा आर्षी गायत्री, ३,७ साम्न्यौ त्रिष्टुभौ, ४ आसुरीगायत्री, ६ त्रिपदा साम्नां जगती, ८ याजुषी त्रिष्टुप्, १० साम्नां भुरिग बृहती, ११, १४-१६ साम्न्योऽनुष्टुभः, १२ विराड् गायत्री, १३ साम्नी निचृत् पंक्तिः, १७ त्रिपदा विराड् भुरिक् गायत्री। सप्तदशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Atithi Yajna: Hospitality
Meaning
And know: If the house holder as the host sees the Atithis, holy visitors, he sees an occasion for a personal performance of yajna in the service of Divinity.
Translation
When a host (house holder, atithipati) looks face to face at: his guests (atithi), he, in fact, is looking at a sacrifice to the enlightened ones.
Translation
Verily when the host looks at his guest he looks at the devayajna, the second of the five Maha yajnas.
Translation
When a householder waits for learned guests, verily he means to honor the holy persons.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(यत्) यदा (वै) निश्चयेन (अतिथिपतिः) अतिथीनां पालकः (अतिथीन्) अ० ७।२१।१। अत सातत्यगमने−इथिन्। नित्यप्रापणीयान् महामान्यान्। विदुषः पुरुषान् (प्रतिपश्यति) प्रतीक्षया पश्यति (देवयजनम्) उत्तमगुणानां संगतिकरणम् (प्र) प्रकर्षेण (ईक्षते) अवलोकयति ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal