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अथर्ववेद के काण्ड - 9 के सूक्त 6 के मन्त्र
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मन्त्र चुनें
अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 2
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - अतिथिः, विद्या
छन्दः - त्रिपदा पिपीलिकमध्या गायत्री
सूक्तम् - अतिथि सत्कार
65
पय॑श्च॒ वा ए॒ष रसं॑ च गृ॒हाणा॑मश्नाति॒ यः पूर्वोऽति॑थेर॒श्नाति॑ ॥
स्वर सहित पद पाठपय॑: । च॒ । वै । ए॒ष: । रस॑म् । च॒ ।गृ॒हाणा॑म् । अ॒श्ना॒ति॒ । य: । पूर्व॑: । अति॑थे: । अ॒श्नाति॑ ॥८.२॥
स्वर रहित मन्त्र
पयश्च वा एष रसं च गृहाणामश्नाति यः पूर्वोऽतिथेरश्नाति ॥
स्वर रहित पद पाठपय: । च । वै । एष: । रसम् । च ।गृहाणाम् । अश्नाति । य: । पूर्व: । अतिथे: । अश्नाति ॥८.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अतिथि के सत्कार का उपदेश।
पदार्थ
(एषः) वह [गृहस्थ] (एव) निश्चय करके (पयः) दूध [वा अन्न] (च च) और (रसम्) रस [स्वादिष्ठ पदार्थ] को... म० १ ॥२॥
भावार्थ
गृहस्थ लोग अतिथि का तिरस्कार करने से महाविपत्तियों में फँसते हैं ॥२-६॥
टिप्पणी
२−(पयः) दुग्धमन्नं वा (च) (वै) (एषः) (रसम्) स्वादिष्ठं पदार्थम् ॥
विषय
अतिथि से पूर्व भोजन करने का परिणाम
पदार्थ
१. (यः) = जो (अतिथे: पूर्वः अश्नाति) = अतिथि को खिलाने से पूर्व स्वयं खा लेता है, (एषः वै) = यह निश्चय से (गृहाणाम्) = घरों के (इष्टं च पूर्तं च) = यज्ञ व कूप-तड़ाग आदि निर्माणात्मक पूर्त कर्मों को (अश्नाति) = खा जाता है, विनष्ट कर बैठता है। २. (पयः च वै रसं च) = यह घर के दूध व रस को निश्चय से विनष्ट कर देता है। ३. (ऊर्जं च वै स्फातिं च) = यह बल व प्राणशक्ति को तथा घर की समृद्धि को नष्ट कर बैठता है। ४. यह अतिथि से पहले ही खा लेनेवाला गृहस्थ (प्रजां च पशून् च) = सन्तानों व पशुओं को नष्ट कर बैठता है। ५. (कीर्तीम् च यश: च) = यह कीर्ति व यश को नष्ट कर बैठता है और ६. (श्रियं च संविदं च) = श्री [लक्ष्मी] व सौहार्द [सौहार्दभाव] को नष्ट कर देता है।
भावार्थ
अतिथि को खिलाने से पूर्व ही भोजन कर लेनेवाला व्यक्ति घर के 'इष्ट-पूर्त को, दूध व रस को, बल व समृद्धि को, प्रजा और पशुओं को, कीर्ति और यश को तथा श्री और संज्ञान को नष्ट कर बैठता है।
भाषार्थ
(यः) जो अतिथिपति (अतिथेः पूर्व अश्नाति) अतिथि से पहिले खा लेता है। (वै) निश्चय से (एषः गृहाणाम् पयः च, रसं च अश्नाति) यह गृहवासियों के लिये दूध को और रस को खाता है, विनष्ट करता है।
विषय
अतिथि यज्ञ न करने से हानियें।
भावार्थ
(यः अतिथेः पूर्वः अश्नाति) जो पुरुष अतिथि के भोजन करने से पहले स्वयं खा लेता है (एषः) वह (गृहाणाम्) घर के (पयः च रसं च०) दुग्ध आदि पदार्थ और रसवान् स्वादु पदार्थों को नष्ट कर देता है॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। अतिथिविद्यावा देवता, १-६, ९ त्रिपदाः पिपीलकमध्या गायत्र्यः, ७ साम्नी बृहती, ८ पिपीकामध्या उष्णिक्। नवर्चं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Atithi Yajna: Hospitality
Meaning
The host that eats before the guest has eaten destroys the pleasure and decency of all his milky and juicy delicacies.
Translation
He devours indeed the milk (payah) and the sap (rasam) of the house, whosoever eats before the guest has eaten.
Translation
The house-holding man who eats before giving food to his guest consumes up milk, juice of fruits of the house.
Translation
The man who eats before the guest devours the milk and sap of the house.
Footnote
Devours: Destroys.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(पयः) दुग्धमन्नं वा (च) (वै) (एषः) (रसम्) स्वादिष्ठं पदार्थम् ॥
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