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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 2
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - अतिथिः, विद्या छन्दः - त्रिपदा गायत्री सूक्तम् - अतिथि सत्कार
    52

    याव॑दग्निष्टो॒मेने॒ष्ट्वा सुस॑मृद्धेनावरु॒न्द्धे ताव॑देने॒नाव॑ रुन्द्धे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    याव॑त् । अ॒ग्नि॒ऽस्तो॒मेन॑ । इ॒ष्ट्वा । सुऽस॑मृध्देन । अ॒व॒ऽरु॒न्ध्दे । ताव॑त् । ए॒ने॒न॒ । अव॑ । रु॒न्ध्दे॒॥९.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यावदग्निष्टोमेनेष्ट्वा सुसमृद्धेनावरुन्द्धे तावदेनेनाव रुन्द्धे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यावत् । अग्निऽस्तोमेन । इष्ट्वा । सुऽसमृध्देन । अवऽरुन्ध्दे । तावत् । एनेन । अव । रुन्ध्दे॥९.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 6; पर्यायः » 4; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    अतिथि के सत्कार का उपदेश।

    पदार्थ

    (यः) जो [गृहस्थ] (एवम्) ऐसा (विद्वान्) विद्वान् है, (सः) वह (क्षीरम्) दूध को (उपसिच्य) सिद्ध करके (उपहरति) भेंट करता है। (यावत्) जितना [फल] (सुसमृद्धेन) बड़ी सम्पत्तिवाले (अग्निष्टोमेन) अग्निष्टोम से [जो वसन्तकाल में सोमयाग किया जाता है] (इष्ट्वा) यज्ञ करके (अवरुन्धे) [मनुष्य] पाता है, (तावत्) उतना [फल] (एनेन) इस [कर्म] से (अवरुन्धे) वह [विद्वान्] पाता है ॥१, २॥

    भावार्थ

    जैसे विज्ञानी पुरुषों के यज्ञ और संगति करने से वसन्तकाल आदि ऋतु में पुष्ट अन्न उत्पन्न होते हैं, उसी प्रकार विद्वान् संन्यासियों की सेवा से उपदेश पाकर गृहस्थ सदा समृद्ध रहते हैं ॥१, २॥

    टिप्पणी

    १, २−(सः) गृहस्थः (यः) (एवम्) पूर्वोक्तप्रकारेण (विद्वान्) (क्षीरम्) दुग्धम् (उपसिच्य) संसाध्य (उपहरति) समर्पयति (यावत्) यत्परिमाणं फलम् (अग्निष्टोमेन) अर्त्तिस्तुसुहु०। उ० १।१४०। ष्टुञ् स्तुतौ-मन्। अग्नेः स्तुत्स्तोमसोमाः। पा० ८।३।८२। इति षः। वसन्तकाले सोमयागविशेषेण (इष्ट्वा) यज्ञं कृत्वा (सुसमृद्धेन) अतिसम्पत्तियुक्तेन (अवरुन्द्धे) प्राप्नोति (तावत्) (एनेन) पूर्वोक्तकर्मणा (अवरुन्द्धे) प्राप्नोति ॥

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    विषय

    क्षीर, सर्पि, मधु, मांस

    पदार्थ

    १. (यः एवं विद्वान्) = जो इसप्रकार अतिथियज्ञ के महत्त्व को जानता है, (स:) = वह (क्षीरम् उपसिच्य) = दूध को पात्र में डालकर (उपहरति) = अतिथि की तृप्ति के लिए प्राप्त कराता है, तो २. (यावत्) = जितना (सुसमृद्धेन) = उत्तम रीति से सम्पादित (अग्निष्टोमेन इष्ट्वा) = अग्निष्टोम यज्ञ से यज्ञ करके (अवरुन्द्ध) = फल प्रास करता है, (तावत्) = उतना (एनेन अवरुन्द्धे) = अतिथियज्ञ से प्राप्त कर लेता है। ३. (यः एवं विद्वान्) = जो इसप्रकार अतिथियज्ञ के महत्त्व को जानता है (स:) = वह सर्पिः उपसिच्य-घृत आदि पौष्टिक पदार्थों को पात्र में डालकर (उपहरति) = अतिथि की तृप्ति के लिए प्राप्त कराता है, तो ४. (यावत्) = जितना (सुसमृद्धेन) = सम्यक् सम्पादित (अतिरात्रेण) = 'अतिरात्र' नामक यज्ञ से (अवरुन्द्धे) = फल प्राप्त करता है (तावत्) = उतना (एनेन अवरुन्द्धे) = इस अतिथि-सत्कार से प्राप्त कर लेता है। ५. (यः एवं विद्वान्) = जो इसप्रकार अतिथियज्ञ के महत्त्व को जानता है (स:) = वह (मधु उपसिच्य) = मधु आदि मधुर पदार्थों को पात्र में डालकर (उपहरति) = अतिथि के लिए प्राप्त कराता है, ६. तो (यावत्) = जितना (सुसमृद्धेन सत्नसोन इष्ट्वा) = सम्यक् सम्पादित 'सत्रसद्य' से यज्ञ करके (अवरुन्द्धे) = फल प्रास करता है, (तावत्) = उतना (एनेन अवरुन्द्धे) = इस अतिथियज्ञ के करने से प्राप्त करता है। ७. (यः एवं विद्वान्) = जो इसप्रकार अतिथियज्ञ के महत्त्व को समझता है, (स:) = यह (मांसम् उपसिच्य) = मन को रुचिपूर्ण लगनेवाले घी, मलाई, फल [The fleshy part of a fruit] आदि पदार्थों को पात्र में डालकर (उपहरति) = अतिथि के लिए प्राप्त कराता है, तो ८. (यावत्) = जितना (सुसमद्धेन द्वादशाहेन इष्ट्वा) = सम्यक् सम्पादित 'द्वादशाह' यज्ञ से यज्ञ करके (अवरुन्द्धे) = फल प्राप्त करता है (तावत्) = उतना एनेन अवरुद्ध इस अतिथियज्ञ से प्राप्त कर लेता है।

    भावार्थ

    अतिथि के लिए 'दूध, घृत, मधु, मांस [मन को अच्छा लगनेवाले पदार्थ] प्राप्त कराने से क्रमश: अग्निष्टोम, अतिरात्र, सत्रसय, द्वादशाह यज्ञों के करने का फल मिलता है।

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    भाषार्थ

    (यः) जो अतिथिपति (एवम्) इस प्रकार (विद्वान्) अतिथियज्ञ के महत्व को जानता है, और (क्षीरम् उपसिच्य) दूध डाल कर (उपहरति) उपहार रूप में अन्न देता है, (सः) वह (सुसमृद्धेन१) उत्तम प्रकार समृद्ध हुए (अग्निष्टामेन) अग्निष्टोम द्वारा (इष्ट्वा) यजन कर के (यावत्) जितना फल (अवरुन्द्धे) प्राप्त करता है (तावत्) उतना फल (अनेन) इस अतिथियज्ञ द्वारा (अवरुन्द्धे) प्राप्त कर लेता है।

    टिप्पणी

    [१. "सुसमृद्धि" फल की दृष्टि से, न कि याज्ञिक इतिकर्त्तव्यता की दृष्टि से। यही भावना अन्य मन्त्रों में भी जाननी चाहिये।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Atithi Yajna: Hospitality

    Meaning

    Attains as much merit of virtue as he would attain by performing an elaborate Agnishtoma yajna.

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    Translation

    He, who knowing thus, pours out milk and presents it (to the guest), with it he wins so much as one wins by performing ' a very successful agnistoma sacrifice.

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    Translation

    1+2. The house-holding man who possesses this knowledge and offers food to guest pouring milk, attains for him as much thereby as he can gain by the performance of successful Agnistoma yajna.

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    Translation

    The man, who having this knowledge of honoring a guest, pouring milk in a basin offers it to the hermit (guest) wins for himself as much fruit thereby as he gains by the performance of a very successful Agnishtoma sacrifice.

    Footnote

    Agnishtoma is a Yajna performed in praise of God in the spring, season.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १, २−(सः) गृहस्थः (यः) (एवम्) पूर्वोक्तप्रकारेण (विद्वान्) (क्षीरम्) दुग्धम् (उपसिच्य) संसाध्य (उपहरति) समर्पयति (यावत्) यत्परिमाणं फलम् (अग्निष्टोमेन) अर्त्तिस्तुसुहु०। उ० १।१४०। ष्टुञ् स्तुतौ-मन्। अग्नेः स्तुत्स्तोमसोमाः। पा० ८।३।८२। इति षः। वसन्तकाले सोमयागविशेषेण (इष्ट्वा) यज्ञं कृत्वा (सुसमृद्धेन) अतिसम्पत्तियुक्तेन (अवरुन्द्धे) प्राप्नोति (तावत्) (एनेन) पूर्वोक्तकर्मणा (अवरुन्द्धे) प्राप्नोति ॥

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