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अथर्ववेद > काण्ड 9 > सूक्त 6 > पर्यायः 1

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  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 6/ मन्त्र 3
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अतिथिः, विद्या छन्दः - साम्नी त्रिष्टुप् सूक्तम् - अतिथि सत्कार

    यद्वा अति॑थिपति॒रति॑थीन्प्रति॒पश्य॑ति देव॒यज॑नं॒ प्रेक्ष॑ते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । वै । अति॑थिऽपति: । अति॑थीन् । प्र॒ति॒ऽपश्य॑ति । दे॒व॒ऽयजन॑म् । प्र । ई॒क्ष॒ते॒ ॥६.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यद्वा अतिथिपतिरतिथीन्प्रतिपश्यति देवयजनं प्रेक्षते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । वै । अतिथिऽपति: । अतिथीन् । प्रतिऽपश्यति । देवऽयजनम् । प्र । ईक्षते ॥६.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 6; पर्यायः » 1; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (यत् वै) जब ही (अतिथिपतिः) अतिथियों का पालन करनेहारा (अतिथीन्) अतिथियों [नित्य मिलने योग्य विद्वानों] को (प्रति-पश्यति) प्रतीक्षा से देखता है, वह (देवयजनम्) उत्तम गुणों का संगतिकरण (प्र ईक्षते) अच्छे प्रकार देखता है ॥३॥

    भावार्थ - गृहस्थ लोग प्रीति से महामान्य विद्वानों का सत्कार करके उत्तम गुण प्राप्त करते हैं ॥३॥

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