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अथर्ववेद > काण्ड 9 > सूक्त 6 > पर्यायः 1

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  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 6/ मन्त्र 7
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अतिथिः, विद्या छन्दः - साम्नी त्रिष्टुप् सूक्तम् - अतिथि सत्कार

    यदा॑वस॒थान्क॒ल्पय॑न्ति सदोहविर्धा॒नान्ये॒व तत्क॑ल्पयन्ति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । आ॒ऽव॒स॒थान् । क॒ल्पय॑न्ति । स॒द॒:ऽह॒वि॒र्धा॒नानि॑ । ए॒व । तत् । क॒ल्प॒य॒न्ति॒ ॥६.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदावसथान्कल्पयन्ति सदोहविर्धानान्येव तत्कल्पयन्ति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । आऽवसथान् । कल्पयन्ति । सद:ऽहविर्धानानि । एव । तत् । कल्पयन्ति ॥६.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 6; पर्यायः » 1; मन्त्र » 7

    पदार्थ -
    (यत्) जब वे [गृहस्थ लोग] (आवसथान्) निवासस्थानों को (कल्पयन्ति) बनाते हैं, (तत्) तब वे [अतिथि लोग] (सदोहविर्धानानि) यज्ञशाला और हवि [लेने-देने योग्य कर्मों] के स्थानों को (एव) ही (कल्पयन्ति) विचारते हैं ॥७॥

    भावार्थ - गृहस्थों के बनाये स्थानों में संन्यासी महात्मा विद्यालय, अद्भुतालय, बिजुली, तार आदि स्थानों का विचार करते हैं ॥७॥

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