Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 4/ मन्त्र 14
    सूक्त - गरुत्मान् देवता - तक्षकः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सर्पविषदूरीकरण सूक्त

    कै॑राति॒का कु॑मारि॒का स॒का खन॑ति भेष॒जम्। हि॑र॒ण्ययी॑भि॒रभ्रि॑भिर्गिरी॒णामुप॒ सानु॑षु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कै॒रा॒ति॒का । कु॒मा॒रि॒का । स॒का । ख॒न॒ति॒ । भे॒ष॒जम् । हि॒र॒ण्ययी॑भि: । अभ्रि॑ऽभि: । गि॒री॒णाम् । उप॑ । सानु॑षु ॥४.१४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कैरातिका कुमारिका सका खनति भेषजम्। हिरण्ययीभिरभ्रिभिर्गिरीणामुप सानुषु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कैरातिका । कुमारिका । सका । खनति । भेषजम् । हिरण्ययीभि: । अभ्रिऽभि: । गिरीणाम् । उप । सानुषु ॥४.१४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 4; मन्त्र » 14

    पदार्थ -

    १. 'किरात' शब्द 'कु विक्षेपे तथा अत सातत्यगमने' धातुओं से बनकर निरन्तर विक्षिप्त गतिबाले का वाचक है। 'कुमार' शब्द 'कुमार क्रीडायाम्' से बनकर 'खेलते रहनेवाले' का वाचक है। इन दोनों हानिकर वृत्तियों को दूर करने का उपाय ज्ञान प्राप्त करना है। आचार्यों के समीप रहकर उनकी ज्ञानदान की क्रियाओं में ही इन वृत्तियों को दूर करने का औषध विद्यमान है, अत: कहा है कि (कैरातिका) = निरन्तर विक्षित गतिवाली (कुमारिका) = विषयों में क्रीडा को मनोवृत्तिवाली (सका) = वह कुत्सित आचरणवाली युवति (गिरीणाम्) = ज्ञान की वाणियों का उपदेश देनेवाले गुरुओं की (सानुषु) = [षणु दाने सनोति] ज्ञानदान की क्रियाओं में (भेषजम्) = अशुभ वृत्तियों के निराकरण की औषध को (हिरण्ययीभिः अभिभिः) = [अभ्र गती] ज्योतिर्मय गतियों के द्वारा (उपखनति) = समीपता से खोदती है। ज्ञान ही औषध है, उसे यह प्राप्त करती है। इस ज्ञान-औषध को प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि ज्ञान-प्राप्ति के अनुकूल क्रियाओंवाली हो। यही भाव यहाँ 'हिरण्ययीभिः अधिभिः' शब्दों से व्यक्त हुआ है।

    भावार्थ -

    ज्ञानदाता आचार्यों के समीप रहकर ज्ञान-प्राप्ति के लिए अनुकूल गतियोंवाले होते हुए हम ज्ञान प्राप्त करें, इस ज्ञान-औषध द्वारा विक्षिप्त गतियों व विषय-क्रीड़ाओं को समाप्त करनेवाले हों।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top