अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 7/ मन्त्र 6
सूक्त - अथर्वा
देवता - उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
छन्दः - पुरोष्णिग्बार्हतपरानुष्टुप्
सूक्तम् - उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
ऐ॒न्द्रा॒ग्नं पा॑वमा॒नं म॒हाना॑म्नीर्महाव्र॒तम्। उच्छि॑ष्टे य॒ज्ञस्याङ्गा॑न्य॒न्तर्गर्भ॑ इव मा॒तरि॑ ॥
स्वर सहित पद पाठऐ॒न्द्रा॒ग्नम् । पा॒व॒मा॒नम् । म॒हाऽना॑म्नी: । म॒हा॒ऽव्र॒तम् । उत्ऽशि॑ष्टे । य॒ज्ञस्य॑ । अङ्गा॑नि । अ॒न्त: । गर्भ॑:ऽइव । मा॒तरि॑ ॥९.६॥
स्वर रहित मन्त्र
ऐन्द्राग्नं पावमानं महानाम्नीर्महाव्रतम्। उच्छिष्टे यज्ञस्याङ्गान्यन्तर्गर्भ इव मातरि ॥
स्वर रहित पद पाठऐन्द्राग्नम् । पावमानम् । महाऽनाम्नी: । महाऽव्रतम् । उत्ऽशिष्टे । यज्ञस्य । अङ्गानि । अन्त: । गर्भ:ऽइव । मातरि ॥९.६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 7; मन्त्र » 6
विषय - उच्छिष्टे यज्ञस्यांगानि
पदार्थ -
१.(ऐन्द्राग्राम) = इन्द्र और अग्नि का स्तवन करनेवाला प्रात:सवन में प्रयुज्यमान साम, (पावमानम्) = तीनों सवनों में प्रयुज्यमान पवमान सोमदेवतावाला साम, (महानाम्नी:) = "विदा मघवन् विदा गातुं०' इत्यादि ऋचाएँ 'इन ऋचाओं में गाया जानेवाला शाक्वर साम', (महाव्रतम्) = 'राजन, गायत्र, बृहद, रथन्तर, भद्र' नामक पाँच सामों से क्रियमाण स्तोत्र। इसप्रकार 'ऐन्द्राग्न०' आदि (यज्ञस्य अंगानि) = यज्ञ के सब अंग (उच्छिष्टे अन्त:) = उच्छिष्यमाण प्रभु के अन्दर इसप्रकार रह रहे हैं. (इव) = जैसी (मातरि गर्भ:) = माता के गर्भ में सन्तान होती है। ब्रह्म में आश्रित होते हुए ये सब यज्ञ के अंश यज्ञ को समृद्ध करते हैं।
भावार्थ -
ऐन्द्राग्न, पावमान, महानानी व महाव्रत आदि यज्ञ के सब अङ्ग उच्छिष्ट प्रभु में ही आश्रित हैं।
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