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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 7/ मन्त्र 5
    सूक्त - अथर्वा देवता - उच्छिष्टः, अध्यात्मम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त

    ऋक्साम॒ यजु॒रुच्छि॑ष्ट उद्गी॒थः प्रस्तु॑तं स्तु॒तम्। हि॑ङ्का॒र उच्छि॑ष्टे॒ स्वरः॒ साम्नो॑ मे॒डिश्च॒ तन्मयि॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऋक् । साम॑ । यजु॑: । उत्ऽशि॑ष्टे । उ॒त्ऽगी॒थ: । प्रऽस्तु॑तम् । स्तु॒तम् । हि॒ङ्ऽका॒र । उत्ऽशि॑ष्टे । स्वर॑: । साम्न॑: । मे॒डि: । च॒ । तत् । मय‍ि॑ ॥९.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऋक्साम यजुरुच्छिष्ट उद्गीथः प्रस्तुतं स्तुतम्। हिङ्कार उच्छिष्टे स्वरः साम्नो मेडिश्च तन्मयि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ऋक् । साम । यजु: । उत्ऽशिष्टे । उत्ऽगीथ: । प्रऽस्तुतम् । स्तुतम् । हिङ्ऽकार । उत्ऽशिष्टे । स्वर: । साम्न: । मेडि: । च । तत् । मय‍ि ॥९.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 7; मन्त्र » 5

    पदार्थ -

    १. (ऋक्) = यज्ञ में याज्यानुवाक्यादि रूप से विनियुक्त पादबद्ध मन्त्र, (साम) = प्रगीतमन्त्र, (यजू:) = प्रश्लिष्ट पठित अनुष्ठेयार्थप्रकाशक मन्त्र, (उच्छिष्टे) = उच्छिष्यमाण ब्रह्म में समाश्रित हैं। (उद्गीथ:) = उदाता से गीयमान सामभाग, (प्रस्तुतम्) = प्रस्तोता से गीयमान प्रस्तावाख्य भाग, स्तुतम् स्तवनकर्म, हिंकार:-गायन के प्रारम्भ में प्रयुज्यमान 'हिं' शब्द, (साम्नः) = सब सामों के साथ सम्बद्ध (स्वर:) = 'कुष्ट, प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, मन्द्र, अतिमन्द्र' रूप सतविध स्वर (च) = और (मेडि:) = ऋगक्षरों व गानविशेष का संसर्जक स्तोमविशेष-ये सब उच्छिष्ट में आश्रित हैं। (तत्) = ये सब यज्ञसमृद्धि के लिए (मयि) = मुझमें भी हों।

    भावार्थ -

    'ऋक, साम, यजुः' रूप त्रिविध मन्त्र, उद्गीथादि पाँचों सामभक्तियाँ उस उच्छिष्ट में ही आश्रित हैं। यज्ञसमृद्धि के लिए मैं भी इनको धारण करूँ।

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