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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 21

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 21/ मन्त्र 10
    सूक्त - सव्यः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-२१

    त्वमा॑विथ सु॒श्रव॑सं॒ तवो॒तिभि॒स्तव॒ त्राम॑भिरिन्द्र॒ तूर्व॑याणम्। त्वम॑स्मै॒ कुत्स॑मतिथि॒ग्वमा॒युं म॒हे राज्ञे॒ यूने॑ अरन्धनायः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । आ॒वि॒थ॒ । सु॒ऽअव॑सम् । तव॑ । ऊ॒तिऽभि॑: । तव॑ । त्राम॑भि: । इ॒न्द्र॒ । तूर्व॑याणम् ॥ त्वम् । अ॒स्मै॒ । कुत्स॑म् । अ॒ति॒थि॒ऽग्वम् । आ॒युम् । म॒हे । राज्ञे॑ । यूने॑ । अ॒र॒न्ध॒ना॒य॒: ॥२१.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वमाविथ सुश्रवसं तवोतिभिस्तव त्रामभिरिन्द्र तूर्वयाणम्। त्वमस्मै कुत्समतिथिग्वमायुं महे राज्ञे यूने अरन्धनायः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । आविथ । सुऽअवसम् । तव । ऊतिऽभि: । तव । त्रामभि: । इन्द्र । तूर्वयाणम् ॥ त्वम् । अस्मै । कुत्सम् । अतिथिऽग्वम् । आयुम् । महे । राज्ञे । यूने । अरन्धनाय: ॥२१.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 21; मन्त्र » 10

    पदार्थ -
    १. (त्वम्) = आप (तव ऊतिभिः) = अपने रक्षणों के द्वारा (सुश्रवसम्) = उत्तम ज्ञानवाले पुरुष की (आविथ) = रक्षा करते हो। हे (इन्द्र) = शत्रुविद्रावक प्रभो! आप (तूर्वयाणम्) = [तूवं याति] हिंसक काम क्रोध आदि पर आक्रमण करनेवाले की (तव त्रामभिः) = अपने रक्षा-साधनों से रक्षा करते हैं। हम 'सश्रवस व तूर्वयाण' बनकर प्रभु की रक्षा के पात्र बनते हैं। २. (त्वम्) = आप (अस्मै) = इस (महे) = महनीय व पूजा की वृत्तिवाले (राज्ञे) = जीवन को व्यवस्थित [Regulated] बनानेवाले (यूने) = दोषों को दूर व अच्छाइयों को समीप प्राप्त करानेवाले इस 'सुश्रवस्' के लिए कुत्सम्'-[कुथ हिंसायाम्] वासनाओं का संहार करनेवाले, (अतिथिग्वम्) = उस महान् अतिथि प्रभु की ओर चलनेवाले (आयुम्) = [एति] गतिशील वीरसन्तान को (अरन्धनाय:) = तैयार करते हैं। इसके घर में ऐसी सन्तानों का ही परिपाक होता है।

    भावार्थ - हम ज्ञानप्राप्ति के व वासना-संहार के मार्ग पर चलते हुए प्रभु के प्रिय व रक्षणीय बनें। हम पूजा की वृत्तिवाले प्रभु की ओर चलनेवाले व अच्छाइयों को धारण करनेवाले बनकर उत्तम सन्तानों को प्राप्त करें।

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