अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 37/ मन्त्र 7
मा ते॑ अ॒स्यां स॑हसाव॒न्परि॑ष्टाव॒घाय॑ भूम हरिवः परा॒दै। त्राय॑स्व नोऽवृ॒केभि॒र्वरू॑थै॒स्तव॑ प्रि॒यासः॑ सू॒रिषु॑ स्याम ॥
स्वर सहित पद पाठमा । ते॒ । अ॒स्याम् । स॒ह॒सा॒ऽव॒न् । परि॑ष्टौ । अ॒घाय॑ । भू॒म॒ । ह॒रि॒ऽव॒: । प॒रा॒ऽदौ ॥ त्राय॑स्व । न॒: । अ॒वृ॒केभि॑: । वरू॑थै: । तव॑ । प्रि॒यास॑: । सू॒रिषु॑ । स्या॒म॒ ॥३७.७॥
स्वर रहित मन्त्र
मा ते अस्यां सहसावन्परिष्टावघाय भूम हरिवः परादै। त्रायस्व नोऽवृकेभिर्वरूथैस्तव प्रियासः सूरिषु स्याम ॥
स्वर रहित पद पाठमा । ते । अस्याम् । सहसाऽवन् । परिष्टौ । अघाय । भूम । हरिऽव: । पराऽदौ ॥ त्रायस्व । न: । अवृकेभि: । वरूथै: । तव । प्रियास: । सूरिषु । स्याम ॥३७.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 37; मन्त्र » 7
विषय - मा अघाय, मा परादै
पदार्थ -
१. हे (सहसावन्) = शत्रुओं को कुचलनेवाले बल से सम्पन्न, (हरिवः) = प्रशस्त इन्द्रियाश्वों को प्रास करानेवाले प्रभो। हम (ते) = आपके (अस्याम्) = इस (परिष्टौ) = अन्वेषणा में [In search of thee] (अघाय) = पाप के लिए (माभूम) = मत हों। (परादै) = परादान के लिए-आपसे त्यागे जाने के लिए न हों। आपकी खोज में लगे हुए हम न तो पापों में फंसे और न ही आप से परित्यक्त हों। २. आप (नः) = हमें (अवकेभि:) = बाधा से शून्य [अबाधै: सा०] (वरूथै:) = रक्षणों द्वारा (त्रायस्व) = रक्षित कीजिए। हम (तव प्रियास:) = आपके प्रिय हों और (सूरिषु स्याम) = ज्ञानियों में गिनतीवाले हों-ज्ञान प्रधान जीवन बिताएँ।
भावार्थ - प्रभु की खोज में लगे हुए हम प्रभु से परित्यक्त न हों-पाप में न फंसे। प्रभु द्वारा रक्षित होकर कर्तव्य-कर्मों में लगे हुए हम प्रभु के प्रिय बनें-ज्ञानप्रधान जीवनवाले बनें।
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