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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 49

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 49/ मन्त्र 5
    सूक्त - नोधाः देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-४९

    द्यु॒क्षं सु॒दानुं॒ तवि॑षीभि॒रावृ॑तं गि॒रिं न पु॑रु॒भोज॑सम्। क्षु॒मन्तं॒ वाजं॑ श॒तिनं॑ सह॒स्रिणं॑ म॒क्षू गोम॑न्तमीमहे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    द्यु॒क्षम् । सु॒ऽदानु॑म् । तावि॑षीभि: । आऽवृ॑तम् । गि॒रिम् । न । पु॒रु॒ऽभोज॑सम् ॥ क्षु॒ऽमन्त॑म् । वाज॑म् । श॒तिन॑म् । स॒ह॒स्रिण॑म् । म॒क्षु॒ । गोऽम॑न्तम् । ई॒म॒हे॒ ॥४९.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    द्युक्षं सुदानुं तविषीभिरावृतं गिरिं न पुरुभोजसम्। क्षुमन्तं वाजं शतिनं सहस्रिणं मक्षू गोमन्तमीमहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    द्युक्षम् । सुऽदानुम् । ताविषीभि: । आऽवृतम् । गिरिम् । न । पुरुऽभोजसम् ॥ क्षुऽमन्तम् । वाजम् । शतिनम् । सहस्रिणम् । मक्षु । गोऽमन्तम् । ईमहे ॥४९.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 49; मन्त्र » 5

    पदार्थ -
    १. हम उस प्रभु से (मक्षु) = शीन (वाजम्) = बल को (ईमहे) = माँगते हैं, जो बल (क्षुमन्तम्) = प्रभु के स्तवन से युक्त है [क्षु शब्दे], (शतिनम्) = सौ-के-सौ वर्ष तक स्थिर रहता है अथवा शतवर्ष के जीवन को प्राप्त कराता है। (सहस्त्रिणम्) = [सहस्]-जीवन को आनन्दयुक्त रखता है तथा (गोमन्तम्) = प्रशस्त इन्द्रियोंवाला है। २. उन प्रभु से हम बल की याचना करते हैं जोकि धुक्षम् ज्ञानज्योति में निवास करनेवाले हैं। (सुदानम्) = ज्ञान के द्वारा वासनाओं का खण्डन करनेवाले हैं। (तविषीभिः आवृतम्) = बलों से आवृत्त हैं-बल के पुञ्ज हैं। ये प्रभु शक्ति प्राप्त कराके हमारा रक्षण करते हैं।

    भावार्थ - प्रभु ज्ञान व शक्ति के पुञ्ज हैं। प्रभु से हम भी उस बल की याचना करते हैं, जो ज्ञान व स्तवन से युक्त है।

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