अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 49/ मन्त्र 6
तत्त्वा॑ यामि सु॒वीर्यं॒ तद्ब्रह्म॑ पू॒र्वचि॑त्तये। येना॒ यति॑भ्यो॒ भृग॑वे॒ धने॑ हि॒ते येन॒ प्रस्क॑ण्व॒मावि॑थ ॥
स्वर सहित पद पाठतत् । त्वा॒ । या॒मि॒ । सु॒ऽवीर्य॑म् । तत् । ब्रह्म॑ । पू॒र्वऽचि॑त्तये ॥ येन॑ । यति॑ऽभ्य: । भृग॑वे । धने॑ । हि॒ते । येन॑ । प्रस्क॑ण्वम् । आवि॑थ ॥४९.६॥
स्वर रहित मन्त्र
तत्त्वा यामि सुवीर्यं तद्ब्रह्म पूर्वचित्तये। येना यतिभ्यो भृगवे धने हिते येन प्रस्कण्वमाविथ ॥
स्वर रहित पद पाठतत् । त्वा । यामि । सुऽवीर्यम् । तत् । ब्रह्म । पूर्वऽचित्तये ॥ येन । यतिऽभ्य: । भृगवे । धने । हिते । येन । प्रस्कण्वम् । आविथ ॥४९.६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 49; मन्त्र » 6
विषय - सुवीर्य+ब्रह्म
पदार्थ -
१. हे प्रभो! (त्वा) = आपसे (तत्) = उस (सुवीर्यम्) = उत्तम शक्ति को (यामि) = माँगता हूँ, और (तत् ब्रह्म) = उस ज्ञान को (पूर्वचित्तये) = पालक व पूरक चेतना के लिए [पृ पालनपूरणयोः] चाहता हूँ (येन) = जिस सुवीर्य व ब्रह्म के द्वारा (यतिभ्यः) = [संन्यासियों] संयमी पुरुषों के लिए तथा (भृगवे) = ज्ञान से अपना परिपाक करनेवाले के लिए (आविथ) = आप रक्षण करते हो। २. मैं उस सुवीर्य व ब्रह्म की याचना करता हूँ जिससे (हिते धने) = हितकर धन के निमित्त (आ प्रस्कण्वम्) = मेधावी पुरुष का (आविथ) = रक्षण करते हो।
भावार्थ - प्रभु हमें वह सुवीर्य व ब्रह्म [ज्ञान] प्राप्त कराएँ जिससे हम संयमी, ज्ञानी व मेधावी बनकर प्रभु-रक्षण के पात्र हों।
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