अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 68/ मन्त्र 11
आ त्वेता॒ नि षी॑द॒तेन्द्र॑म॒भि प्र गा॑यत। सखा॑यः॒ स्तोम॑वाहसः ॥
स्वर सहित पद पाठस्वर रहित मन्त्र
आ त्वेता नि षीदतेन्द्रमभि प्र गायत। सखायः स्तोमवाहसः ॥
स्वर रहित पद पाठ अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 68; मन्त्र » 11
विषय - सम्मिलित प्रभु-पूजन
पदार्थ -
१. हे (स्तोमवाहस:) = प्रभु के स्तोत्रों का धारण करनेवाले (सखायः) = मित्रो! (आ तु एत) = आप निश्चय से आइए और आकर (निषीदत) = आपने-अपने आसनों पर नम्रता से बैठिए तथा (इन्द्रम्) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु का (अभिप्रगायत) = प्रात:-सायं गायन कीजिए। २. 'स्तोमवाहसः' शब्द से यह भाव स्पष्ट है कि हमें प्रभु के स्तोत्रों को अपने जीवन में अनूदित करना है [वह to carry out] | सखायः' का भाव 'तुल्य ख्यानवाले-समान विचारवाले है। प्रभु-स्तवन की वृत्तिवाले एकत्र होते हैं' और मिलकर नम्रता से प्रभु का पूजन करते हैं।
भावार्थ - हम प्रतिदिन सम्मिलित होकर नम्रता से प्रभु-पूजन करनेवाले हों।
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