अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 89/ मन्त्र 2
दोहे॑न॒ गामुप॑ शिक्षा॒ सखा॑यं॒ प्र बो॑धय जरितर्जा॒रमिन्द्र॑म्। कोशं॒ न पू॒र्णं वसु॑ना॒ न्यृ॑ष्ट॒मा च्या॑वय मघ॒देया॑य॒ शूर॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठदोहे॑न । गाम् । उप॑ । शि॒क्ष॒ । सखा॑यम् । प्र । बो॒ध॒य॒ । ज॒रि॒त॒: । जा॒रम् । इन्द्र॑म् ॥ कोश॑म् । न । पू॒र्णम् । वसु॑ना । निऽऋ॑ष्टम् । आ । च्य॒व॒य॒ । म॒घ॒ऽदेया॑य । शूर॑म् ॥८९.२॥
स्वर रहित मन्त्र
दोहेन गामुप शिक्षा सखायं प्र बोधय जरितर्जारमिन्द्रम्। कोशं न पूर्णं वसुना न्यृष्टमा च्यावय मघदेयाय शूरम् ॥
स्वर रहित पद पाठदोहेन । गाम् । उप । शिक्ष । सखायम् । प्र । बोधय । जरित: । जारम् । इन्द्रम् ॥ कोशम् । न । पूर्णम् । वसुना । निऽऋष्टम् । आ । च्यवय । मघऽदेयाय । शूरम् ॥८९.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 89; मन्त्र » 2
विषय - गोदोहन-इन्द्र प्रबोधन
पदार्थ -
१. (गां दोहेन) = वेदवाणीरूप गौ के दोहन से, अर्थात् ज्ञान-प्राप्ति के द्वारा तू (सखायम्) = उस सनातन मित्र प्रभु को (उपशिक्षा) = समीपता से जाननेवाला हो। ज्ञानीभक्त बनकर तू प्रभु को आत्मतुल्य प्रिय हो 'ज्ञानी त्वात्मैव में मतम् । २. इस ज्ञान के द्वारा (जारित:) = स्तवन करनेवाले जीव| तू (जारम्) = विषय-वासनाओं को जीर्ण करनेवाले (इन्द्रम्) = उस असुरों के संहारक प्रभु को (प्रबोधय) = अपने हृदय में जागरित कर। इस प्रभुरूप सूर्य के उदय के साथ सब वासनान्धकार विलीन हो जाएगा। ३. ये प्रभु (कोशं न पूर्णम्) = एक पूर्ण कोश के समान हैं-प्रभु की प्राप्ति से तेरी सब कामनाएँ पूर्ण हो जाएँगी। (वसुना) = निवास के लिए आवश्यक सब धनों से (न्यृष्टम्) = ये प्रभु निश्चय से युक्त हैं। सम्पूर्ण वसु उस प्रभु की ओर ही प्रवाहवाले हैं [ऋष् to flow]| प्रभु को प्राप्त कर लेने पर इनकी प्राति तो हो ही जाती है, इसलिए तू (शूरम्) = सब धनों के विजेता तथा सब बुराइयों को शीर्ण करनेवाले उसे प्रभु को (मघदेयाय) = ऐश्वयों के देने के लिए (आच्यावय) = अपने अभिमुख कर। प्रभु की प्राप्ति में ही सब धनों की प्राप्ति है।
भावार्थ - हम ज्ञानधेनु का दोहन करें। प्रभु के प्रकाश को हदय में प्राप्त करने का प्रयत्न करें। प्रभु ही सब धनों के कोश है-प्रभु-प्राप्ति में सब धनों की प्राप्ति है।
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