अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 94/ मन्त्र 5
गम॑न्न॒स्मे वसू॒न्या हि शंसि॑षं स्वा॒शिषं॒ भर॒मा या॑हि सो॒मिनः॑। त्वमी॑शिषे॒ सास्मिन्ना स॑त्सि ब॒र्हिष्य॑नाधृ॒ष्या तव॒ पात्रा॑णि॒ धर्म॑णा ॥
स्वर सहित पद पाठगम॑न् । अ॒स्मे इति॑ । वसू॑नि । आ । हि । शंसि॑षम् । सु॒ऽआ॒शिष॑म् । भर॑म् । आ । या॒हि॒ । सो॒मिन॑: ॥ त्वम् । ई॒शि॒षे॒ । स: । अ॒स्मिन् । आ । व॒त्सि॒ । ब॒र्हिषि॑ । अ॒ना॒धृ॒ष्या । तव॑ । पात्रा॑णि । धर्म॑णा ॥९४.५॥
स्वर रहित मन्त्र
गमन्नस्मे वसून्या हि शंसिषं स्वाशिषं भरमा याहि सोमिनः। त्वमीशिषे सास्मिन्ना सत्सि बर्हिष्यनाधृष्या तव पात्राणि धर्मणा ॥
स्वर रहित पद पाठगमन् । अस्मे इति । वसूनि । आ । हि । शंसिषम् । सुऽआशिषम् । भरम् । आ । याहि । सोमिन: ॥ त्वम् । ईशिषे । स: । अस्मिन् । आ । वत्सि । बर्हिषि । अनाधृष्या । तव । पात्राणि । धर्मणा ॥९४.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 94; मन्त्र » 5
विषय - अनाधृष्यपात्र
पदार्थ -
१. हे प्रभो। गतमन्त्र के अनुसार जब मैं अपने इस शरीर को सोम का पात्र बनाता हूँ शरीर में सोम का रक्षण करता हूँ तब (हि) = निश्चय से (अस्मे) = हममें (वसूनि) = जीवन को उत्तम बनानेवाले सब वासक तत्व (आगमन्) = प्राप्त होते हैं और मैं (शंसिषम्) = आपका शंसन व स्तवन करनेवाला बनता हूँ-मेरी वृत्ति भोगप्रवण न होकर प्रभु-प्रवण होती है। आप मुझ (सोमिन:) = सोम का रक्षण करनेवाले के (सु-आशिषम्) = उत्तम इच्छाओंवाले (भरम्) = भरणात्मक यज्ञ को (आयाहि) = आइए। (त्वम् ईशिषे) = वस्तुतः आप ही तो इन सब यज्ञों के ईश हैं। आपकी कृपा से ही सब यज्ञ पूर्ण हुआ करते हैं। २. (स:) = वे आप (अस्मिन्) = इस हमारे (बर्हिषि) = वासनाओं का जिसमें से उबर्हण कर दिया गया है और यज्ञों का जिसमें स्थापन हुआ है उस हदय में (आसत्सि) = आकर विराजमान होते हैं। उन हृदयस्थ आपकी प्रेरणा व शक्ति से ही सब यज्ञपूर्ण हुआ करते है। ३. हे प्रभो! (तव) = आपकी (धर्मणा) = धारकशक्ति से ही (पात्राणि) = ये सोम-रक्षण के पात्रभूत हमारे शरीर (अनाधृष्या आधि) = व्याधियों से धर्षण के योग्य नहीं होते। हदय में आपके उपस्थित होने पर वहाँ'काम' का प्रवेश नहीं होता। परिणामत: सोम का रक्षण होकर शरीर रोगाभिभूत नहीं होता। इसप्रकार यह स्वस्थ शरीर व स्वस्थ मनवाला पुरुष 'आदर्श पुरुष' बनता है।
भावार्थ - सोम का रक्षण होने पर हमारे हदयों में प्रभु का वास होगा। उस समय हमारे शरीर रोगों से आक्रान्त न होंगे और मन वासनाओं से मलिन न होंगे।
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